No festivals today or in the next 14 days. 🎉
Narayaniyam Dashaka 2 (नारायणीयं दशक 2)
नारायणीयं दशक 2 (Narayaniyam Dashaka 2)
सूर्यस्पर्धिकिरीटमूर्ध्वतिलकप्रोद्भासिफालांतरं
कारुण्याकुलनेत्रमार्द्रहसितोल्लासं सुनासापुटम्।
गंडोद्यन्मकराभकुंडलयुगं कंठोज्वलत्कौस्तुभं
त्वद्रूपं वनमाल्यहारपटलश्रीवत्सदीप्रं भजे॥1॥
केयूरांगदकंकणोत्तममहारत्नांगुलीयांकित-
श्रीमद्बाहुचतुष्कसंगतगदाशंखारिपंकेरुहाम् ।
कांचित् कांचनकांचिलांच्छितलसत्पीतांबरालंबिनी-
मालंबे विमलांबुजद्युतिपदां मूर्तिं तवार्तिच्छिदम् ॥2॥
यत्त्त्रैलोक्यमहीयसोऽपि महितं सम्मोहनं मोहनात्
कांतं कांतिनिधानतोऽपि मधुरं माधुर्यधुर्यादपि ।
सौंदर्योत्तरतोऽपि सुंदरतरं त्वद्रूपमाश्चर्यतोऽ-
प्याश्चर्यं भुवने न कस्य कुतुकं पुष्णाति विष्णो विभो ॥3॥
तत्तादृङ्मधुरात्मकं तव वपुः संप्राप्य संपन्मयी
सा देवी परमोत्सुका चिरतरं नास्ते स्वभक्तेष्वपि ।
तेनास्या बत कष्टमच्युत विभो त्वद्रूपमानोज्ञक -
प्रेमस्थैर्यमयादचापलबलाच्चापल्यवार्तोदभूत् ॥4॥
लक्ष्मीस्तावकरामणीयकहृतैवेयं परेष्वस्थिरे-
त्यस्मिन्नन्यदपि प्रमाणमधुना वक्ष्यामि लक्ष्मीपते ।
ये त्वद्ध्यानगुणानुकीर्तनरसासक्ता हि भक्ता जना-
स्तेष्वेषा वसति स्थिरैव दयितप्रस्तावदत्तादरा ॥5॥
एवंभूतमनोज्ञतानवसुधानिष्यंदसंदोहनं
त्वद्रूपं परचिद्रसायनमयं चेतोहरं शृण्वताम् ।
सद्यः प्रेरयते मतिं मदयते रोमांचयत्यंगकं
व्यासिंचत्यपि शीतवाष्पविसरैरानंदमूर्छोद्भवैः ॥6॥
एवंभूततया हि भक्त्यभिहितो योगस्स योगद्वयात्
कर्मज्ञानमयात् भृशोत्तमतरो योगीश्वरैर्गीयते ।
सौंदर्यैकरसात्मके त्वयि खलु प्रेमप्रकर्षात्मिका
भक्तिर्निश्रममेव विश्वपुरुषैर्लभ्या रमावल्लभ ॥7॥
निष्कामं नियतस्वधर्मचरणं यत् कर्मयोगाभिधं
तद्दूरेत्यफलं यदौपनिषदज्ञानोपलभ्यं पुनः ।
तत्त्वव्यक्ततया सुदुर्गमतरं चित्तस्य तस्माद्विभो
त्वत्प्रेमात्मकभक्तिरेव सततं स्वादीयसी श्रेयसी ॥8॥
अत्यायासकराणि कर्मपटलान्याचर्य निर्यन्मला
बोधे भक्तिपथेऽथवाऽप्युचिततामायांति किं तावता ।
क्लिष्ट्वा तर्कपथे परं तव वपुर्ब्रह्माख्यमन्ये पुन-
श्चित्तार्द्रत्वमृते विचिंत्य बहुभिस्सिद्ध्यंति जन्मांतरैः ॥9॥
त्वद्भक्तिस्तु कथारसामृतझरीनिर्मज्जनेन स्वयं
सिद्ध्यंती विमलप्रबोधपदवीमक्लेशतस्तन्वती ।
सद्यस्सिद्धिकरी जयत्ययि विभो सैवास्तु मे त्वत्पद-
प्रेमप्रौढिरसार्द्रता द्रुततरं वातालयाधीश्वर ॥10॥
Related to Vishnu
Vishnu Shatpadi (विष्णु षट्पदि)
विष्णु षट्पदि एक दिव्य भजन है जो भगवान विष्णु को समर्पित है। यह भजन भगवान विष्णु की महिमा का वर्णन करता है और भक्तों को शांति और भक्ति के मार्ग पर अग्रसर करता है।Shloka-Mantra
Narayaniyam Dashaka 50 (नारायणीयं दशक 50)
नारायणीयं दशक 50 भगवान विष्णु के भक्तों के प्रति अनुग्रह और उनकी दिव्य लीलाओं का वर्णन करता है। यह अध्याय भगवान विष्णु की महिमा और उनकी असीम कृपा का वर्णन करता है।Narayaniyam-Dashaka
Narayaniyam Dashaka 72 (नारायणीयं दशक 72)
नारायणीयं दशक 72 भगवान नारायण की महिमा का गुणगान करता है और उनकी कृपा की प्रार्थना करता है।Narayaniyam-Dashaka
Narayaniyam Dashaka 81 (नारायणीयं दशक 81)
नारायणीयं का इक्यासीवां दशक भगवान विष्णु की असीम कृपा और उनके भक्तों के प्रति उनके अनुग्रह का वर्णन करता है। इस दशक में भगवान की कृपा और उनके भक्तों के प्रति उनके प्रेम की महिमा की गई है। भक्त भगवान की अनंत कृपा और उनकी दिव्यता का अनुभव करते हैं।Narayaniyam-Dashaka
Alokye Shri Balakrishnam (आलोकये श्री बालकृष्णम्)
आलोकये श्री बालकृष्णम् भगवान कृष्ण के बाल रूप की सुंदरता और लीलाओं का वर्णन करता है।Shloka-Mantra
Narayaniyam Dashaka 90 (नारायणीयं दशक 90)
नारायणीयं दशक 90 में भगवान विष्णु की लीलाओं और उनकी महिमा का विस्तार से वर्णन है। यह अध्याय भक्तों के लिए अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव और ज्ञान की गंगा प्रदान करता है।Narayaniyam-Dashaka
Narayaniyam Dashaka 57 (नारायणीयं दशक 57)
नारायणीयं दशक 57 भगवान विष्णु के भक्तों के प्रति अनुग्रह और उनकी दिव्य लीलाओं का वर्णन करता है। यह अध्याय भगवान विष्णु की महिमा और उनकी असीम कृपा का वर्णन करता है।Narayaniyam-Dashaka
Narayaniyam Dashaka 99 (नारायणीयं दशक 99)
नारायणीयं दशक 99 भगवान विष्णु की कृपा और उनके भक्तों के प्रति उनकी करुणा का वर्णन करता है। यह अध्याय भगवान के अनंत प्रेम और करुणा को दर्शाता है।Narayaniyam-Dashaka