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Santana Gopala Stotram (संतान गोपाल स्तोत्रम्)
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Krishnashtakam (कृष्णाष्टकम्)
आदि शंकराचार्य द्वारा रचित "श्री कृष्णाष्टकम्" (Sri Krishnastakam/ श्रीकृष्णाष्टकम्) भगवान श्री कृष्ण के दिव्य गुणों और लीलाओं का सुंदर रूप से वर्णन करता है। इसमें कृष्ण के मोहक रूप, दयालु कर्म और उनके भक्तों पर फैलने वाली आनंद की बात की गई है। ये श्लोक केवलStotra
Gita Govindam trutiyah sargah - Mugdh Madhusudanah (गीतगोविन्दं तृतीयः सर्गः - मुग्ध मधुसूदनः)
गीतगोविन्दं के तृतीय सर्ग में मुग्ध मधुसूदन का वर्णन किया गया है। यह खंड कृष्ण की चंचलता और राधा के प्रति उनके प्रेम को दर्शाता है।Gita-Govindam
Gita Govindam dvitiyah sargah - Aklesh Keshavah (गीतगोविन्दं द्वितीयः सर्गः - अक्लेश केशवः)
गीतगोविन्दं के द्वितीय सर्ग में अक्लेश केशव का वर्णन किया गया है। यह खंड राधा और कृष्ण के बीच की दूरी और उनकी पुनर्मिलन की कहानी को दर्शाता है।Gita-Govindam
Bhagavad Gita Eleventh Chapter (भगवद गीता ग्यारहवाँ अध्याय)
भगवद गीता ग्यारहवां अध्याय "विश्व रूप दर्शन योग" है। इस अध्याय में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपना विश्वरूप दिखाया, जिसमें उन्होंने अपने संपूर्ण ब्रह्मांडीय स्वरूप का दर्शन कराया। यह अध्याय भगवान की महानता और असीम शक्ति को प्रकट करता है।Bhagwat-Gita
Bhagavad Gita fourth chapter (भगवद गीता चौथा अध्याय)
भगवद गीता चौथा अध्याय "ज्ञान-कर्म-संन्यास योग" के रूप में जाना जाता है। इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ज्ञान, कर्म, और संन्यास के महत्व को समझाते हैं। वे बताते हैं कि कैसे ईश्वर के प्रति समर्पण और सच्चे ज्ञान के साथ किया गया कर्म आत्मा को शुद्ध करता है। श्रीकृष्ण यह भी समझाते हैं कि उन्होंने यह ज्ञान समय-समय पर संतों और भक्तों को प्रदान किया है। यह अध्याय हमें सिखाता है कि "निष्काम कर्म" और "आध्यात्मिक ज्ञान" के बीच सामंजस्य कैसे स्थापित करें।Bhagwat-Gita
Bhagavad Gita second chapter (भगवद गीता दूसरा अध्याय)
भगवद गीता के दूसरे अध्याय का नाम "सांख्य योग" या "ज्ञान का योग" है। यह अध्याय गीता का सबसे महत्वपूर्ण अध्याय माना जाता है, क्योंकि इसमें भगवान कृष्ण अर्जुन को जीवन, कर्तव्य और आत्मा के गूढ़ रहस्यों का ज्ञान देते हैं। श्रीकृष्ण अर्जुन को आत्मा की अमरता, कर्मयोग का महत्व और समभाव बनाए रखने की शिक्षा देते हैं। यह अध्याय जीवन में सही दृष्टिकोण अपनाने और अपने धर्म का पालन करने के लिए प्रेरित करता है।Bhagwat-Gita
Gita Govindam Panchamah sargah - Sakanksh Pundarikakshah (गीतगोविन्दं पञ्चमः सर्गः - साकाङ्क्ष पुण्डरीकाक्षः)
गीतगोविन्दं के पंचम सर्ग में साकाङ्क्ष पुण्डरीकाक्षः का वर्णन किया गया है। यह खंड कृष्ण की राधा के प्रति इच्छा और उनकी प्रेम की गहराई को दर्शाता है।Gita-Govindam
Shrimad Bhagwad Gita Parayaan - Chapter 7 (श्रीमद्भगवद्गीता पारायण - सप्तमोऽध्यायः)
श्रीमद्भगवद्गीता पारायण के सप्तमोऽध्याय में कृष्ण ने अर्जुन को भक्ति योग और ईश्वर की अद्वितीयता के बारे में समझाया है।Shrimad-Bhagwad-Gita-Parayaan