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Shri Govinda Stuti || श्री गोविंदास्तुति : Full Lyrics in Sanskrit; भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य स्वरूप, कृपा और महिमा का भक्तिपूर्ण स्तवन |
Shri Govinda Stuti (श्री गोविंदास्तुति)
Govinda Stuti (गोविंदास्तुति)/ Govinda Ashtakam (गोविंदा अष्टकम) एक devotional Stotra है, जिसे Adi Shankaracharya ने Lord Vishnu के Govinda रूप की स्तुति में लिखा था। Hindu Mythology के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति regularly इस स्तोत्र का chanting करता है, तो वह Lord Govinda को प्रसन्न कर उनकी divine blessings प्राप्त कर सकता है। Best results प्राप्त करने के लिए इस स्तोत्र का पाठ early morning स्नान करने के बाद, Lord Govinda की idol या picture के सामने बैठकर करना चाहिए। इस स्तोत्र के meaning in Hindi को समझकर पाठ करने से इसका effect और अधिक बढ़ जाता है। Govinda का नाम before eating anything अवश्य लेना चाहिए। Kshatrabandhu की कथा Govinda Nama के महत्व को दर्शाती है। Kshatrabandhu एक cruel man था, जो जंगलों में यात्रा करने वालों को लूटता था। लेकिन जब एक sage से उसने Govinda नाम सुना, तो उसका salvation हो गया।|| श्री गोविंदा स्तुति ||
(Govinda Stuti)
चिदानन्दाकारं श्रुतिसरससारं समरसं
निराधाराधारं भवजलधिपारं परगुणम्।
रमाग्रीवाहारं व्रजवनविहारं हरनुतं
सदा तं गोविन्दं परमसुखकन्दं भजत रे।
महाम्भोधिस्थानं स्थिरचरनिदानं दिविजपं
सुधाधारापानं विहगपतियानं यमरतम्।
मनोज्ञं सुज्ञानं मुनिजननिधानं ध्रुवपदं
सदा तं गोविन्दं परमसुखकन्दं भजत रे।
धिया धीरैर्ध्येयं श्रवणपुटपेयं यतिवरै-
र्महावाक्यैर्ज्ञेयं त्रिभुवनविधेयं विधिपरम्।
मनोमानामेयं सपदि हृदि नेयं नवतनुं
सदा तं गोविन्दं परमसुखकन्दं भजत रे।
महामायाजालं विमलवनमालं मलहरं
सुभालं गोपालं निहतशिशुपालं शशिमुखम्।
कलातीतं कालं गतिहतमरालं मुररिपुं
सदा तं गोविन्दं परमसुखकन्दं भजत रे।
नभोबिम्बस्फीतं निगमगणगीतं समगतिं
सुरौघै: सम्प्रीतं दितिजविपरीतं पुरिशयम्।
गिरां मार्गातीतं स्वदितनवनीतं नयकरं
सदा तं गोविन्दं परमसुखकन्दं भजत रे।
परेशं पद्मेशं शिवकमलजेशं शिवकरं
द्विजेशं देवेशं तनुकुटिलकेशं कलिहरम्।
खगेशं नागेशं निखिलभुवनेशं नगधरं
सदा तं गोविन्दं परमसुखकन्दं भजत रे।
रमाकान्तं कान्तं भवभयभयान्तं भवसुखं
दुराशान्तं शान्तं निखिलहृदि भान्तं भुवनपम्।
विवादान्तं दान्तं दनुजनिचयान्तं सुचरितं
सदा तं गोविन्दं परमसुखकन्दं भजत रे।
जगज्ज्येष्ठं श्रेष्ठं सुरपतिकनिष्ठं क्रतुपतिं
बलिष्ठं भूयिष्ठं त्रिभुवनवरिष्ठं वरवहम्।
स्वनिष्ठं धर्मिष्ठं गुरुगुणगरिष्ठं गुरुवरं
सदा तं गोविन्दं परमसुखकन्दं भजत रे।
गदापाणेरेतद्दुरितदलनं दु:खशमनं
विशुद्धात्मा स्तोत्रं पठति मनुजो यस्तु सततम्।
स भुक्त्वा भोगौघं चिरमिह ततोSपास्तवृजिन:
परं विष्णो: स्थानं व्रजति खलु वैकुण्ठभुवनम्।
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