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Shri Meenakshi Stuti || श्री मीनाक्षी स्तुति : Full Lyrics, Meaning, and Benefits for Divine Blessings
Shri Meenakshi Stuti (श्री मीनाक्षी स्तुति)
Shri Meenakshi Stuti देवी मीनाक्षी की महिमा का वर्णन करती है, जो "Goddess of Power" और "Divine Protector" के रूप में पूजित हैं। यह स्तुति विशेष रूप से मीनाक्षी देवी के सौंदर्य, शक्ति और उनके "Divine Grace" को प्रणाम करती है। देवी मीनाक्षी को "Supreme Goddess" और "Goddess of Knowledge" के रूप में भी जाना जाता है, जो भक्तों को जीवन के हर क्षेत्र में सफलता और समृद्धि प्रदान करती हैं। Shri Meenakshi Stuti का पाठ "Goddess Meenakshi Prayer" और "Spiritual Power Hymn" के रूप में किया जाता है। इसके जाप से व्यक्ति के जीवन में "Divine Protection" और "Inner Peace" का संचार होता है। यह स्तोत्र "Blessings for Prosperity" और "Mental Strength Prayer" के रूप में भी प्रभावी है। इसका नियमित पाठ भक्तों को "Positive Energy" और "Spiritual Awakening" प्रदान करता है। Shri Meenakshi Stuti को "Divine Feminine Energy Chant" और "Goddess Meenakshi Blessings" के रूप में पढ़ने से जीवन में हर बाधा दूर होती है।|| श्री मीनाक्षी स्तुति ||
(Shri Meenakshi Stuti)
अद्राक्षं बहुभाग्यतो गुरुवरैः सम्पूज्यमानां मुदा
पुल्लन्मल्लिमुखप्रसूननिवहैर्हालास्यनाथप्रियाम् ।
वीणावेणुमृदङ्गवाद्यमुदितामेणाङ्क बिम्बाननां
काणादादिसमस्तशास्त्रमतिताम् शोणाधरां श्यामलाम् ॥
मातङ्गकुम्भविजयीस्तनभारभुग्न
मध्यां मदारुणविलोचनवश्यकान्ताम् ।
ताम्राधरस्फुरितहासविधूततार
राजप्रवालसुषुमां भज मीननेत्राम् ॥
आपादमस्तकदयारसपूरपूर्णां
शापायुधोत्तमसमर्चितपादपद्माम् ।
चापयितेक्षुममलीमसचित्ततायै
नीपाटविविहर्णां भज मीननेत्रम् ॥
कन्दर्प वैर्यपि यया सविलास हास
नेत्रावलोकन वशीकृत मानसोऽभूत् ।
तां सर्वदा सकल मोहन रूप वेषां
मोहान्धकार हरणां भज मीननेत्राम् ॥
अद्यापि यत्पुरगतः सकलोऽपि जन्तुः
क्षुत्तृड् व्यथा विरहितः प्रसुवेव बालः ।
सम्पोश्यते करुणया भजकार्ति हन्त्रीं
भक्त्याऽन्वहं तां हृदय भज मीननेत्राम् ॥
हालास्यनाथ दयिते करुणा पयोधे
बालं विलोल मनसं करुणैक पात्रम् ।
वीक्षस्व मां लघु दयार्मिल दृष्टपादैर्-
मातर्न मेऽस्ति भुवने गतिरन्द्रा त्वम् ॥
श्रुत्युक्त कर्म निवहाकरणाद्विशुद्धिः
चित्तस्य नास्ति मम चञ्चलता निवृत्तैः ।
कुर्यां किमम्ब मनसा सकलाघ शान्त्यैः
मातस्तवदङ्घ्रि भजनं सततं दयस्व ॥
त्वद्रूपदेशिकवरैः सततं विभाव्यं
चिद्रूपमादि निधनन्तर हीनमम्ब ।
भद्रावहं प्रणमतां सकलाघ हन्तृ
त्वद्रूपमेव मम हृत्कमले विभातु ॥
॥ इति श्री जगद्गुरु शृङ्गगिरि चन्द्रशेखरभारतिस्वामिगळ् विरचितं मीनाक्षीस्तुतिः सम्पूर्णम् ॥
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