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Kali Kavacham || काली कवचम् : Powerful Mantra with Full Lyrics for Removal of Negative Energy
Kali Kavacham (काली कवचम्)
Kali Kavach (काली कवच): माँ काली को दस Mahavidyas में प्रथम स्थान प्राप्त है। Maa Kali सभी enemies, diseases और Tantra obstacles को दूर करती हैं। जो व्यक्ति नियमित रूप से Kali Kavach का पाठ करता है, उसके enemies स्वतः ही नष्ट होने लगते हैं, diseases ठीक होने लगते हैं। चाहे enemy कितना भी बड़ा क्यों न हो, वह Tantra-Mantra के सहारे भी उस व्यक्ति का कुछ नहीं बिगाड़ सकता, जो यह Kali Kavach धारण करता है। यह एक अत्यंत powerful Kavach है। यदि किसी व्यक्ति की Kundli में Shani की Sade Sati, Shani की Mahadasha, Shani की Dhaiya है या Shani planet किसी भी प्रकार से harm पहुँचा रहा है, तो Kali Kavach का पाठ करने से वह effect धीरे-धीरे कम होने लगता है। जो लोग इसे नियमित रूप से Puja के समय पढ़ते हैं, उनके family से diseases धीरे-धीरे समाप्त होने लगते हैं। परिवार का environment positive बनने लगता है। Job loss, business problems, debt, wealth loss आदि समस्याएँ दूर हो जाती हैं। Kali Yantra Kavach धारण करने और Kali Kavach का पाठ करने से व्यक्ति सभी enemies से सुरक्षित रहता है। Evil eye और black magic का effect समाप्त हो जाता है। यदि किसी पर hypnosis या Tantra किया गया हो, तो वह भी ineffective हो जाता है। माँ काली सभी तंत्र बाधाओं से रक्षा करती हैं।काली कवचम् (Kali Kavacham)
॥ विनियोग मन्त्र: ॥
ॐ अस्य श्री काली कवचस्य भैरव ऋषिर्गायत्री छंदः,
श्री काली देवता सद्यः शत्रु हननार्थे पाठे विनियोगः।
॥ काली ध्यानम् ॥
ध्यात्वा कालीं महामाया त्रिनेत्रां बहरूपिणीम्,
चतुर्भुजां लोलजिह्लां पूर्ण चन्द्र निभाननाम्।।९॥
नीलोत्पलदलश्यामां शत्रुसंघ विदारिणीम्।
नरमुण्डं तथा खड्गं कमलं बरदं तथा ॥२॥
विभ्राणां रक्तवसनां घोरदंष्टा स्वरूपिणीम्
अट्टाय्हासनिरतां सर्वदा च दिगम्बराम्॥३॥
शवासनस्थितां देवी मुण्डमाला विभूषिताम्।
इति ध्यात्वा महादेवीं ततस्तु कवचं पठेत्॥४॥
॥ शिव उवाचः ॥
रावण के द्वारा पूछे जाने पर यह कवच भगवान शिवजी ने ऱबण को बताया था।
ॐ कालिका घोर रूपादया सर्वकाम प्रदा शुभा,
सर्व देव स्तुता देवी शत्रुनाशं करोतु मे॥१॥
ह्रीं ह्रीं स्वरूपिणी चैव ह्रीं ह्रीं सं हं गिनी तथा,
ह्रीं ह्रीं क्षै क्षौं स्वरूपा सा सर्वदा शत्रु नाशिनी ॥२॥
श्रीं ह्रीं ऐं रूपिणीं देवी भव बन्ध विमोचिनी,
यथा शुम्भो हतो दैत्यो निशुम्भश्च महासुरः ॥३॥
बैरिनाशाय वन्दे तां कालिकां शंकर प्रियाम्। '
ब्राह्मी शैवी वैष्णवी च वाराही नारसिंहिका।४॥
कौमारी श्रीश्चचामुण्डा खाद्ययन्तु मम द्विषान्।
सुरेश्वरी घोररूपा चण्ड मुण्ड विनाशिनी॥५॥
मुण्डमाला वृतांगी च सर्वतः पातु माँ सदा,
ह्रीं ह्रीं कालिके घोरदष्ट रुधिर प्रिये।।६॥
॥ माला मन्त्रः ॥
ॐ रुधिर पूर्ण वक्त्रे च च रुधिरावितास्तिनी मम णत्रून खाद्य खाद्य, हिसय हिंसय, मारय मारय, भिन्धि भिन्धि, छिन्धि छिन्धि, उच्चाटय उच्चाटय, द्रावय द्रावय, शोषय शोषय यातुधानिके चामुंड हीं हीं वाँ वीं कालिकायै मर्व शत्रून समर्पयामि स्वाहा, ॐ जहि जहि, किटि किटि, किरि किरि, कटु कटु, मर्दयं मर्दय, मोहय, हर हर मम् रिपून् ध्वंसय, भक्षय भक्षय, त्रोटय टय मातु धानिका चामुण्डायै सर्व जनान, राज पुरुषान, गजश्रियं देहि देहि, नूतनं नृतनं धान्य जक्षय जक्षय क्षां क्षीं क्षुं क्षौ क्षः स्वाहा।
॥ फल श्रुति ॥
इत्येतत् कवचं दिव्यं कथितं तव रावणः,ये पठन्ति सदा भक्तया तेषां नश्यन्ति शत्रुवः ॥७॥ वैरिणः प्रलयं यान्ति व्याधिताशय भवन्ति हि, धनहीनः पुत्रहीनः शत्रुदस्तय सर्वदा ॥८॥ सहस्त्र पठनात् सिद्धिः कवचस्य भवेत्तदा, ततः कार्याणि सिद्धयंति नान्यथा मम् भाषितम् ॥९॥
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