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Shri Rudra Laghunyasam (श्री रुद्रं लघुन्यासम्)
श्री रुद्रं लघुन्यासम्
(Shri Rudra Laghunyasam)
ॐ अथात्मानग्ं शिवात्मानं श्री रुद्ररूपं ध्यायेत् ॥
शुद्धस्फटिक संकाशं त्रिनेत्रं पंच वक्त्रकम् ।
गंगाधरं दशभुजं सर्वाभरण भूषितम् ॥
नीलग्रीवं शशांकांकं नाग यज्ञोप वीतिनम् ।
व्याघ्र चर्मोत्तरीयं च वरेण्यमभय प्रदम् ॥
कमंडल्-वक्ष सूत्राणां धारिणं शूलपाणिनम् ।
ज्वलंतं पिंगलजटा शिखा मुद्द्योत धारिणम् ॥
वृष स्कंध समारूढं उमा देहार्थ धारिणम् ।
अमृतेनाप्लुतं शांतं दिव्यभोग समन्वितम् ॥
दिग्देवता समायुक्तं सुरासुर नमस्कृतम् ।
नित्यं च शाश्वतं शुद्धं ध्रुव-मक्षर-मव्ययम् ।
सर्व व्यापिन-मीशानं रुद्रं-वैँ विश्वरूपिणम् ।
एवं ध्यात्वा द्विजः सम्यक् ततो यजनमारभेत् ॥
अथातो रुद्र स्नानार्चनाभिषेक विधिं-व्याँ᳚क्ष्यास्यामः ।
आदित एव तीर्थे स्नात्वा,
उदेत्य शुचिः प्रयतो ब्रह्मचारी शुक्लवासा देवाभिमुखः स्थित्वा,
आत्मनि देवताः स्थापयेत् ॥
प्रजनने ब्रह्मा तिष्ठतु ।
पादयोर्विष्णुस्तिष्ठतु ।
हस्तयोर्हरस्तिष्ठतु ।
बाह्वोरिंद्रस्तिष्टतु ।
जठरेऽअग्निस्तिष्ठतु ।
हृद॑ये शिवस्तिष्ठतु ।
कंठे वसवस्तिष्ठंतु ।
वक्त्रे सरस्वती तिष्ठतु ।
नासिकयो-र्वायुस्तिष्ठतु ।
नयनयो-श्चंद्रादित्यौ तिष्टेताम् ।
कर्णयोरश्विनौ तिष्टेताम् ।
ललाटे रुद्रास्तिष्ठंतु ।
मूर्थ्न्यादित्यास्तिष्ठंतु ।
शिरसि महादेवस्तिष्ठतु ।
शिखायां-वाँमदेवास्तिष्ठतु ।
पृष्ठे पिनाकी तिष्ठतु ।
पुरतः शूली तिष्ठतु ।
पार्श्वयोः शिवाशंकरौ तिष्ठेताम् ।
सर्वतो वायुस्तिष्ठतु ।
ततो बहिः सर्वतोऽग्निर्ज्वालामाला-परिवृतस्तिष्ठतु ।
सर्वेष्वंगेषु सर्वा देवता यथास्थानं तिष्ठंतु ।
माग्ं रक्षंतु ।
अ॒ग्निर्मे॑ वा॒चि श्रि॒तः । वाघृद॑ये । हृद॑यं॒ मयि॑ । अ॒हम॒मृते᳚ । अ॒मृतं॒ ब्रह्म॑णि ।
वा॒युर्मे᳚ प्रा॒णे श्रि॒तः । प्रा॒णो हृद॑ये । हृद॑यं॒ मयि॑ । अ॒हम॒मृते᳚ । अ॒मृतं॒ ब्रह्म॑णि ।
सूर्यो॑ मे॒ चक्षुषि श्रि॒तः । चक्षु॒र्हृद॑ये । हृद॑यं॒ मयि॑ । अ॒हम॒मृते᳚ । अ॒मृतं॒ ब्रह्म॑णि ।
चं॒द्रमा॑ मे॒ मन॑सि श्रि॒तः । मनो॒ हृद॑ये । हृद॑यं॒ मयि॑ । अ॒हम॒मृते᳚ । अ॒मृतं॒ ब्रह्म॑णि ।
दिशो॑ मे॒ श्रोत्रे᳚ श्रि॒ताः । श्रोत्र॒ग्ं॒ हृद॑ये । हृद॑यं॒ मयि॑ । अ॒हम॒मृते᳚ । अ॒मृतं॒ ब्रह्म॑णि ।
आपोमे॒ रेतसि श्रि॒ताः । रेतो हृद॑ये । हृद॑यं॒ मयि॑ । अ॒हम॒मृते᳚ । अ॒मृतं॒ ब्रह्म॑णि ।
पृ॒थि॒वी मे॒ शरी॑रे श्रि॒ता । शरी॑र॒ग्ं॒ हृद॑ये । हृद॑यं॒ मयि॑ । अ॒हम॒मृते᳚ । अ॒मृतं॒ ब्रह्म॑णि ।
ओ॒ष॒धि॒ व॒न॒स्पतयो॑ मे॒ लोम॑सु श्रि॒ताः । लोमा॑नि॒ हृद॑ये । हृद॑यं॒ मयि॑ । अ॒हम॒मृते᳚ । अ॒मृतं॒ ब्रह्म॑णि ।
इंद्रो॑ मे॒ बले᳚ श्रि॒तः । बल॒ग्ं॒ हृद॑ये । हृद॑यं॒ मयि॑ । अ॒हम॒मृते᳚ । अ॒मृतं॒ ब्रह्म॑णि ।
प॒र्जन्यो॑ मे॒ मू॒र्द्नि श्रि॒तः । मू॒र्धा हृद॑ये । हृद॑यं॒ मयि॑ । अ॒हम॒मृते᳚ । अ॒मृतं॒ ब्रह्म॑णि ।
ईशा॑नो मे॒ म॒न्यौ श्रि॒तः । म॒न्युर्हृद॑ये । हृद॑यं॒ मयि॑ । अ॒हम॒मृते᳚ । अ॒मृतं॒ ब्रह्म॑णि ।
आ॒त्मा म॑ आ॒त्मनि॑ श्रि॒तः । आ॒त्मा हृद॑ये । हृद॑यं॒ मयि॑ । अ॒हम॒मृते᳚ । अ॒मृतं॒ ब्रह्म॑णि ।
पुन॑र्म आ॒त्मा पुन॒रायु॒ रागा᳚त् । पुनः॑ प्रा॒णः पुन॒राकू॑त॒मागा᳚त् । वै॒श्वा॒न॒रो र॒श्मिभि॑र्वावृधा॒नः । अं॒तस्ति॑ष्ठ॒त्वमृत॑स्य गो॒पाः ॥
अस्य श्री रुद्राध्याय प्रश्न महामंत्रस्य,
अघोर ऋषिः,
अनुष्टुप् छंदः,
संकर्षण मूर्ति स्वरूपो योऽसावादित्यः परमपुरुषः स एष रुद्रो देवता ।
नमः शिवायेति बीजम् ।
शिवतरायेति शक्तिः ।
महादेवायेति कीलकम् ।
श्री सांब सदाशिव प्रसाद सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ॥
ॐ अग्निहोत्रात्मने अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
दर्शपूर्ण मासात्मने तर्जनीभ्यां नमः ।
चातुर्मास्यात्मने मध्यमाभ्यां नमः ।
निरूढ पशुबंधात्मने अनामिकाभ्यां नमः ।
ज्योतिष्टोमात्मने कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
सर्वक्रत्वात्मने करतल करपृष्ठाभ्यां नमः ॥
अग्निहोत्रात्मने हृदयाय नमः ।
दर्शपूर्ण मासात्मने शिरसे स्वाहा ।
चातुर्मास्यात्मने शिखायै वषट् ।
निरूढ पशुबंधात्मने कवचाय हुम् ।
ज्योतिष्टोमात्मने नेत्रत्रयाय वौषट् ।
सर्वक्रत्वात्मने अस्त्रायफट् । भूर्भुवस्सुवरोमिति दिग्बंधः ॥
ध्यानं
आपाताल-नभःस्थलांत-भुवन-ब्रह्मांड-माविस्फुरत्-
ज्योतिः स्फाटिक-लिंग-मौलि-विलसत्-पूर्णेंदु-वांतामृतैः ।
अस्तोकाप्लुत-मेक-मीश-मनिशं रुद्रानु-वाकांजपन्
ध्याये-दीप्सित-सिद्धये ध्रुवपदं-विँप्रोऽभिषिंचे-च्चिवम् ॥
ब्रह्मांड व्याप्तदेहा भसित हिमरुचा भासमाना भुजंगैः
कंठे कालाः कपर्दाः कलित-शशिकला-श्चंड कोदंड हस्ताः ।
त्र्यक्षा रुद्राक्षमालाः प्रकटितविभवाः शांभवा मूर्तिभेदाः
रुद्राः श्रीरुद्रसूक्त-प्रकटितविभवा नः प्रयच्चंतु सौख्यम् ॥
ॐ गणानां त्वा गणपतिग्ं हवामहे कविं कवीनामुपमश्रवस्तमम् ।
ज्येष्ठराजं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पद आ नः शृण्वन्नूतिभिस्सीद सादनम् ॥
महागणपतये नमः ॥
शं च मे मयश्च मे प्रियं च मेऽनुकामश्च मे कामश्च मे सौमनसश्च मे भद्रं च मे श्रेयश्च मे वस्यश्च मे यशश्च मे भगश्च मे द्रविणं च मे यंता च मे धर्ता च मे क्षेमश्च मे धृतिश्च मे विश्वं च मे महश्च मे संविंच्च मे ज्ञात्रं च मे सूश्च मे प्रसूश्च मे सीरं च मे लयश्च म ऋतं च मे अमृतं च मेऽयक्ष्मं च मेऽनामयच्च मे जीवातुश्च मे दीर्घायुत्वं च मेऽनमित्रं च मेऽभयं च मे सुगं च मे शयनं च मे सूषा च मे सुदिनं च मे ॥
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ॥
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