No festivals today or in the next 14 days. 🎉
Shri Rudra Laghunyasam (श्री रुद्रं लघुन्यासम्)
श्री रुद्रं लघुन्यासम्
(Shri Rudra Laghunyasam)
ॐ अथात्मानग्ं शिवात्मानं श्री रुद्ररूपं ध्यायेत् ॥
शुद्धस्फटिक संकाशं त्रिनेत्रं पंच वक्त्रकम् ।
गंगाधरं दशभुजं सर्वाभरण भूषितम् ॥
नीलग्रीवं शशांकांकं नाग यज्ञोप वीतिनम् ।
व्याघ्र चर्मोत्तरीयं च वरेण्यमभय प्रदम् ॥
कमंडल्-वक्ष सूत्राणां धारिणं शूलपाणिनम् ।
ज्वलंतं पिंगलजटा शिखा मुद्द्योत धारिणम् ॥
वृष स्कंध समारूढं उमा देहार्थ धारिणम् ।
अमृतेनाप्लुतं शांतं दिव्यभोग समन्वितम् ॥
दिग्देवता समायुक्तं सुरासुर नमस्कृतम् ।
नित्यं च शाश्वतं शुद्धं ध्रुव-मक्षर-मव्ययम् ।
सर्व व्यापिन-मीशानं रुद्रं-वैँ विश्वरूपिणम् ।
एवं ध्यात्वा द्विजः सम्यक् ततो यजनमारभेत् ॥
अथातो रुद्र स्नानार्चनाभिषेक विधिं-व्याँ᳚क्ष्यास्यामः ।
आदित एव तीर्थे स्नात्वा,
उदेत्य शुचिः प्रयतो ब्रह्मचारी शुक्लवासा देवाभिमुखः स्थित्वा,
आत्मनि देवताः स्थापयेत् ॥
प्रजनने ब्रह्मा तिष्ठतु ।
पादयोर्विष्णुस्तिष्ठतु ।
हस्तयोर्हरस्तिष्ठतु ।
बाह्वोरिंद्रस्तिष्टतु ।
जठरेऽअग्निस्तिष्ठतु ।
हृद॑ये शिवस्तिष्ठतु ।
कंठे वसवस्तिष्ठंतु ।
वक्त्रे सरस्वती तिष्ठतु ।
नासिकयो-र्वायुस्तिष्ठतु ।
नयनयो-श्चंद्रादित्यौ तिष्टेताम् ।
कर्णयोरश्विनौ तिष्टेताम् ।
ललाटे रुद्रास्तिष्ठंतु ।
मूर्थ्न्यादित्यास्तिष्ठंतु ।
शिरसि महादेवस्तिष्ठतु ।
शिखायां-वाँमदेवास्तिष्ठतु ।
पृष्ठे पिनाकी तिष्ठतु ।
पुरतः शूली तिष्ठतु ।
पार्श्वयोः शिवाशंकरौ तिष्ठेताम् ।
सर्वतो वायुस्तिष्ठतु ।
ततो बहिः सर्वतोऽग्निर्ज्वालामाला-परिवृतस्तिष्ठतु ।
सर्वेष्वंगेषु सर्वा देवता यथास्थानं तिष्ठंतु ।
माग्ं रक्षंतु ।
अ॒ग्निर्मे॑ वा॒चि श्रि॒तः । वाघृद॑ये । हृद॑यं॒ मयि॑ । अ॒हम॒मृते᳚ । अ॒मृतं॒ ब्रह्म॑णि ।
वा॒युर्मे᳚ प्रा॒णे श्रि॒तः । प्रा॒णो हृद॑ये । हृद॑यं॒ मयि॑ । अ॒हम॒मृते᳚ । अ॒मृतं॒ ब्रह्म॑णि ।
सूर्यो॑ मे॒ चक्षुषि श्रि॒तः । चक्षु॒र्हृद॑ये । हृद॑यं॒ मयि॑ । अ॒हम॒मृते᳚ । अ॒मृतं॒ ब्रह्म॑णि ।
चं॒द्रमा॑ मे॒ मन॑सि श्रि॒तः । मनो॒ हृद॑ये । हृद॑यं॒ मयि॑ । अ॒हम॒मृते᳚ । अ॒मृतं॒ ब्रह्म॑णि ।
दिशो॑ मे॒ श्रोत्रे᳚ श्रि॒ताः । श्रोत्र॒ग्ं॒ हृद॑ये । हृद॑यं॒ मयि॑ । अ॒हम॒मृते᳚ । अ॒मृतं॒ ब्रह्म॑णि ।
आपोमे॒ रेतसि श्रि॒ताः । रेतो हृद॑ये । हृद॑यं॒ मयि॑ । अ॒हम॒मृते᳚ । अ॒मृतं॒ ब्रह्म॑णि ।
पृ॒थि॒वी मे॒ शरी॑रे श्रि॒ता । शरी॑र॒ग्ं॒ हृद॑ये । हृद॑यं॒ मयि॑ । अ॒हम॒मृते᳚ । अ॒मृतं॒ ब्रह्म॑णि ।
ओ॒ष॒धि॒ व॒न॒स्पतयो॑ मे॒ लोम॑सु श्रि॒ताः । लोमा॑नि॒ हृद॑ये । हृद॑यं॒ मयि॑ । अ॒हम॒मृते᳚ । अ॒मृतं॒ ब्रह्म॑णि ।
इंद्रो॑ मे॒ बले᳚ श्रि॒तः । बल॒ग्ं॒ हृद॑ये । हृद॑यं॒ मयि॑ । अ॒हम॒मृते᳚ । अ॒मृतं॒ ब्रह्म॑णि ।
प॒र्जन्यो॑ मे॒ मू॒र्द्नि श्रि॒तः । मू॒र्धा हृद॑ये । हृद॑यं॒ मयि॑ । अ॒हम॒मृते᳚ । अ॒मृतं॒ ब्रह्म॑णि ।
ईशा॑नो मे॒ म॒न्यौ श्रि॒तः । म॒न्युर्हृद॑ये । हृद॑यं॒ मयि॑ । अ॒हम॒मृते᳚ । अ॒मृतं॒ ब्रह्म॑णि ।
आ॒त्मा म॑ आ॒त्मनि॑ श्रि॒तः । आ॒त्मा हृद॑ये । हृद॑यं॒ मयि॑ । अ॒हम॒मृते᳚ । अ॒मृतं॒ ब्रह्म॑णि ।
पुन॑र्म आ॒त्मा पुन॒रायु॒ रागा᳚त् । पुनः॑ प्रा॒णः पुन॒राकू॑त॒मागा᳚त् । वै॒श्वा॒न॒रो र॒श्मिभि॑र्वावृधा॒नः । अं॒तस्ति॑ष्ठ॒त्वमृत॑स्य गो॒पाः ॥
अस्य श्री रुद्राध्याय प्रश्न महामंत्रस्य,
अघोर ऋषिः,
अनुष्टुप् छंदः,
संकर्षण मूर्ति स्वरूपो योऽसावादित्यः परमपुरुषः स एष रुद्रो देवता ।
नमः शिवायेति बीजम् ।
शिवतरायेति शक्तिः ।
महादेवायेति कीलकम् ।
श्री सांब सदाशिव प्रसाद सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ॥
ॐ अग्निहोत्रात्मने अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
दर्शपूर्ण मासात्मने तर्जनीभ्यां नमः ।
चातुर्मास्यात्मने मध्यमाभ्यां नमः ।
निरूढ पशुबंधात्मने अनामिकाभ्यां नमः ।
ज्योतिष्टोमात्मने कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
सर्वक्रत्वात्मने करतल करपृष्ठाभ्यां नमः ॥
अग्निहोत्रात्मने हृदयाय नमः ।
दर्शपूर्ण मासात्मने शिरसे स्वाहा ।
चातुर्मास्यात्मने शिखायै वषट् ।
निरूढ पशुबंधात्मने कवचाय हुम् ।
ज्योतिष्टोमात्मने नेत्रत्रयाय वौषट् ।
सर्वक्रत्वात्मने अस्त्रायफट् । भूर्भुवस्सुवरोमिति दिग्बंधः ॥
ध्यानं
आपाताल-नभःस्थलांत-भुवन-ब्रह्मांड-माविस्फुरत्-
ज्योतिः स्फाटिक-लिंग-मौलि-विलसत्-पूर्णेंदु-वांतामृतैः ।
अस्तोकाप्लुत-मेक-मीश-मनिशं रुद्रानु-वाकांजपन्
ध्याये-दीप्सित-सिद्धये ध्रुवपदं-विँप्रोऽभिषिंचे-च्चिवम् ॥
ब्रह्मांड व्याप्तदेहा भसित हिमरुचा भासमाना भुजंगैः
कंठे कालाः कपर्दाः कलित-शशिकला-श्चंड कोदंड हस्ताः ।
त्र्यक्षा रुद्राक्षमालाः प्रकटितविभवाः शांभवा मूर्तिभेदाः
रुद्राः श्रीरुद्रसूक्त-प्रकटितविभवा नः प्रयच्चंतु सौख्यम् ॥
ॐ गणानां त्वा गणपतिग्ं हवामहे कविं कवीनामुपमश्रवस्तमम् ।
ज्येष्ठराजं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पद आ नः शृण्वन्नूतिभिस्सीद सादनम् ॥
महागणपतये नमः ॥
शं च मे मयश्च मे प्रियं च मेऽनुकामश्च मे कामश्च मे सौमनसश्च मे भद्रं च मे श्रेयश्च मे वस्यश्च मे यशश्च मे भगश्च मे द्रविणं च मे यंता च मे धर्ता च मे क्षेमश्च मे धृतिश्च मे विश्वं च मे महश्च मे संविंच्च मे ज्ञात्रं च मे सूश्च मे प्रसूश्च मे सीरं च मे लयश्च म ऋतं च मे अमृतं च मेऽयक्ष्मं च मेऽनामयच्च मे जीवातुश्च मे दीर्घायुत्वं च मेऽनमित्रं च मेऽभयं च मे सुगं च मे शयनं च मे सूषा च मे सुदिनं च मे ॥
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ॥
Related to Shiv
Bhagwan Shri Shivshankar Arti (भगवान् श्री शिवशंकर की आरती)
भगवान महादेव की आरती भगवान शिव की स्तुति में गाया जाने वाला एक भक्तिपूर्ण गीत है। इस आरती के माध्यम से भक्त Lord Shiva से आशीर्वाद, दुखों का नाश, और मोक्ष की कामना करते हैं।Arti
Chandrasekhara Ashtakam (चंद्रशेखराष्टकम्)
Chandrasekhara Ashtakam भगवान Lord Shiva की स्तुति में रचित एक पवित्र Hindu Devotional Stotra है। इसमें Chandrasekhara Shiva की महिमा और उनकी Divine Powers का वर्णन किया गया है। इस Sacred Hymn का पाठ करने से भक्तों को Spiritual Growth और कष्टों से मुक्ति मिलती है। Shiva Bhajan और Mantra Chanting से जीवन में Positive Energy और समृद्धि आती है। यह Powerful Stotra संकटों को हरने वाला और मोक्ष प्रदान करने वाला माना जाता है। Lord Shiva Worship के साथ इसका नियमित पाठ भक्तों को अनंत कृपा देता है।Ashtakam
Mahamrityunjaya Mantra (संपूर्ण महामृत्युंजय मंत्र)
महामृत्युंजय मंत्र का उल्लेख Rigveda से लेकर Yajurveda तक में मिलता है। वहीं Shiv Puran सहित अन्य scriptures में भी इसका importance बताया गया है। संस्कृत में महामृत्युंजय उस व्यक्ति को कहते हैं जो death को जीतने वाला हो। इसलिए Lord Shiva की स्तुति के लिए महामृत्युंजय मंत्र का chanting किया जाता है। इसके chanting से संसार के सभी sufferings से liberation मिलती है। ये मंत्र life-giving है। इससे vitality तो बढ़ती ही है साथ ही positivity बढ़ती है। महामृत्युंजय मंत्र के effect से हर तरह का fear और tension खत्म हो जाती है। Shiv Puran में उल्लेख किए गए इस मंत्र के chanting से आदि शंकराचार्य को भी life की प्राप्ति हुई थी।Mantra
Dwadash Jyotirlinga Stotram (द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम्)
Dwadash Jyotirlinga Stotram भगवान Shiva के 12 पवित्र ज्योतिर्लिंगों की महिमा का वर्णन करता है। यह स्तोत्र भगवान शिव को "Destroyer of Evil" और "Supreme Protector" के रूप में आदरपूर्वक स्मरण करता है। इसमें सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, काशी विश्वनाथ, त्र्यंबकेश्वर, भीमाशंकर, रामेश्वरम, और अन्य ज्योतिर्लिंगों की "Sacred Sites of Shiva" के रूप में स्तुति की गई है। यह स्तोत्र "Shiva Devotional Hymn" और "Spiritual Protection Chant" के रूप में प्रसिद्ध है। इसके नियमित पाठ से जीवन में शांति, सकारात्मक ऊर्जा और आत्मिक शक्ति प्राप्त होती है। Dwadash Jyotirlinga Stotram को "Hymn for 12 Jyotirlingas" और "Prayer for Divine Blessings" के रूप में पढ़ने से भक्त का मनोबल और विश्वास बढ़ता है।Stotra
Bhairava Rupa Shiva Stuti (भैरवरूप शिव स्तुति)
Bhairava Rupa Shiva Stuti (भैरवरूप शिव स्तुति) भगवान Shiva के उग्र और Bhairava स्वरूप को समर्पित एक दिव्य stuti है। भगवान भैरव को protector, destroyer of negativity और guardian of cosmic order माना जाता है। यह hymn भगवान शिव के उन गुणों को दर्शाता है, जिनमें वे fearlessness, protection, और justice के प्रतीक हैं। इस stuti का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन से fear, obstacles, और negative energies समाप्त होती हैं। विशेष रूप से Kalabhairava Ashtami और Amavasya के दिन इसका recitation अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है। Bhairava के भक्तों को इस stuti का नित्य पाठ करना चाहिए, जिससे वे courage, strength, और divine blessings प्राप्त कर सकें।Stuti
Ardhanarishwar Stuti (अर्धनारीश्वर स्तुति)
Ardhanarishwar Stuti भगवान Shiva और देवी Parvati के अद्भुत रूप की स्तुति है, जो "Divine Union" और "Supreme Energy" का प्रतीक हैं। यह स्तुति उनके संयुक्त रूप की "Cosmic Power" और "Balance of Energies" को दर्शाती है। यह स्तोत्र "Shiva-Parvati Devotional " और "Spiritual Harmony Prayer" के रूप में प्रसिद्ध है। इसके पाठ से जीवन में मानसिक शांति और ऊर्जा का संचार होता है। Ardhanarishwar Stuti को "Divine Protector Prayer" और "Sacred Chant for Balance" के रूप में पढ़ने से आंतरिक शक्ति मिलती है।Stuti
Shri Vaidyanath Ashtakam (श्री वैद्यनाथ अष्टकम)
Shri Vaidyanath Ashtakam (श्री वैद्यनाथ अष्टकम) भगवान Shiva के Vaidyanath Jyotirlinga की महिमा का वर्णन करने वाला एक अत्यंत शक्तिशाली स्तोत्र है। यह अष्टकम भगवान शिव के divine healer रूप का गुणगान करता है, क्योंकि Vaidyanath को समस्त रोगों और कष्टों को दूर करने वाला माना जाता है। कहा जाता है कि इस स्तोत्र के नियमित पाठ से good health, mental peace और spiritual upliftment प्राप्त होता है। श्री वैद्यनाथाष्टकम् के साथ-साथ यदि Shiva Aarti का पाठ किया जाए तो Shri Vaidyanath Ashtakam का बहुत लाभ मिलता है, मनोवांछित कामना पूर्ण होती है, और यह अष्टकम शीघ्र ही फल देने लग जाता है। घर में peace, prosperity और harmony बनाए रखने के लिए Shiva Chalisa का पाठ करना चाहिए। साथ ही, प्रतिदिन Shiva Sahasranama का पाठ करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।Ashtakam
Shri Shrishail Mallikarjun Suprabhatam (श्री श्रीशैल मल्लिकार्जुन सुप्रभातम्)
श्री श्रीशैल मल्लिकार्जुन सुप्रभातम् भगवान मल्लिकार्जुन को समर्पित एक प्रार्थना है, जो भक्तों को उनकी कृपा और आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए प्रातःकालीन भजन के रूप में गाई जाती है।Shloka-Mantra