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Shri Kamakhya Devi Kavacham || श्री कामाख्या देवी कवचम् : Full Lyrics; तांत्रिक साधना एवं दिव्य संरक्षण का अद्भुत स्तोत्र
Shri Kamakhya Devi Kavacham (श्री कामाख्या देवी कवचम्)
shri Kamakhya kavachaShri Kamakhya Kavacha (श्री कामाख्या कवच) आज हर व्यक्ति उन्नति, यश, वैभव, कीर्ति और धन-संपदा प्राप्त करना चाहता है, वह भी बिना किसी बाधा के। Maa Kamakhya Devi का कवच पाठ करने से सभी Obstacles समाप्त हो जाते हैं, और साधक को Success तथा Prosperity प्राप्त होती है। यदि आप अपने जीवन में मनोकामना पूर्ति चाहते हैं, तो इस कवच का नियमित पाठ करें। यह Maa Kamakhya की Divine Protection प्रदान करता है और जीवन से Negative Energies तथा दुर्भाग्य को दूर करता है।॥ श्री कामाख्या देवी कवचम् ॥
(Shri Kamakhya Devi Kavacham)
॥ कामाख्या ध्यानम् ॥
रविशशियुतकर्णा कुंकुमापीतवर्णा
मणिकनकविचित्रा लोलजिह्वा त्रिनेत्रा ।
अभयवरदहस्ता साक्षसूत्रप्रहस्ता
प्रणतसुरनरेशा सिद्धकामेश्वरी सा ॥
अरुणकमलसंस्था रक्तपद्मासनस्था
नवतरुणशरीरा मुक्तकेशी सुहारा ।
शवहृदि पृथुतुङ्गा स्वाङ्घ्रियुग्मा मनोज्ञा
शिशुरविसमवस्त्रा सर्वकामेश्वरी सा ॥
विपुलविभवदात्री स्मेरवक्त्रा सुकेशी
दलितकरकदन्ता सामिचन्द्रावतंसा ।
मनसिज-दृशदिस्था योनिमुद्रालसन्ती
पवनगगनसक्ता संश्रुतस्थानभागा ।
चिन्ता चैवं दीप्यदग्निप्रकाशा
धर्मार्थाद्यैः साधकैर्वाञ्छितार्था ॥
॥ कामाख्या-कवचम् ॥
ॐ कामाख्याकवचस्य मुनिर्बृहस्पतिः स्मृतः ।
देवी कामेश्वरी तस्य अनुष्टुप्छन्द इष्यते ॥
विनियोगः सर्वसिद्धौ तञ्च शृण्वन्तु देवताः ।
शिराः कामेश्वरी देवी कामाख्या चक्षूषी मम ॥
शारदा कर्णयुगलं त्रिपुरा वदनं तथा ।
कण्ठे पातु माहामाया हृदि कामेश्वरी पुनः ॥
कामाख्या जठरे पातु शारदा पातु नाभितः ।
त्रिपुरा पार्श्वयोः पातु महामाया तु मेहने ॥
गुदे कामेश्वरी पातु कामाख्योरुद्वये तु माम् ।
जानुनोः शारदा पातु त्रिपुरा पातु जङ्घयोः ॥
माहामाया पादयुगे नित्यं रक्षतु कामदा ।
केशे कोटेश्वरि पातु नासायां पातु दीर्घिका ॥
भैरवी (शुभगा) दन्तसङ्घाते मातङ्ग्यवतु चाङ्गयोः ।
बाह्वोर्मे ललिता पातु पाण्योस्तु वनवासिनी ॥
विन्ध्यवासिन्यङ्गुलीषु श्रीकामा नखकोटिषु ।
रोमकूपेषु सर्वेषु गुप्तकामा सदावतु ॥
पादाङ्गुली पार्ष्णिभागे पातु मां भुवनेश्वरी ।
जिह्वायां पातु मां सेतुः कः कण्टाभ्यन्तरेऽवतु ॥
पातु नश्चान्तरे वक्षः ईः पातु जठरान्तरे ।
सामीन्दुः पातु मां वस्तौ विन्दुर्विन्द्वन्तरेऽवतु ॥
ककारस्त्वचि मां पातु रकारोऽस्थिषु सर्वदा ।
लकारः सर्वनाडिषु ईकारः सर्वसन्धिषु ॥
चन्द्रः स्नायुषु मां पातु विन्दुर्मज्जासु सन्ततम् ।
पूर्वस्यां दिशि चाग्नेय्यां दक्षिणे नैरृते तथा ॥
वारुणे चैव वायव्यां कौबेरे हरमन्दिरे ।
अकाराद्यास्तु वैष्णव्याः अष्टौ वर्णास्तु मन्त्रगाः ॥
पान्तु तिष्ठन्तु सततं समुद्भवविवृद्धये ।
ऊर्द्ध्वाधः पातु सततं मां तु सेतुद्वये सदा ॥
नवाक्षराणि मन्त्रेषु शारदा मन्त्रगोचरे ।
नवस्वरास्तु मां नित्यं नासादिषु समन्ततः ॥
वातपित्तकफेभ्यस्तु त्रिपुरायास्तु त्र्यक्षरम् ।
नित्यं रक्षतु भूतेभ्यः पिशाचेभ्यस्तथैव च ॥
तत् सेतु सततं पातु क्रव्याद्भ्यो मान्निवारकम् नमः
कामेश्वरीं देवीं महामायां जगन्मयीम् ।
या भूत्वा प्रकृतिर्नित्या तनोति जगदायतम् ॥
कामाख्यामक्षमालाभयवरदकरां सिद्धसूत्रैकहस्तां
श्वेतप्रेतोपरिस्थां मणिकनकयुतां कुङ्कमापीतवर्णाम् ।
ज्ञानध्यानप्रतिष्ठामतिशयविनयां ब्रह्मशक्रादिवन्द्या मग्नौ
विन्द्वन्तमन्त्रप्रियतमविषयां नौमि विन्ध्याद्र्यतिस्थाम् ॥
मध्ये मध्यस्य भागे सततविनमिता भावहारावली या
लीलालोकस्य कोष्ठे सकलगुणयुता व्यक्तरूपैकनम्रा ।
विद्या विद्यैकशान्ता शमनशमकरी क्षेमकर्त्री वरास्या
नित्यं पायात् पवित्रप्रणववरकरा कामपूर्वेश्वरी नः ॥
इति हरेः कवचं तनुकेस्थितं
शमयति वै शमनं तथा यदि ।
इह गृहाण यतस्व विमोक्षणे
सहित एष विधिः सह चामरैः ॥
इतीदं कवचं यस्तु कामाख्यायाः पठेद्बुधः ।
सुकृत् तं तु महादेवी तनु व्रजति नित्यदा ॥
नाधिव्याधिभयं तस्य न क्रव्याद्भ्यो भयं तथा ।
नाग्नितो नापि तोयेभ्यो न रिपुभ्यो न राजतः ॥
दीर्घायुर्बहुभोगी च पुत्रपौत्रसमन्वितः ।
आवर्तयन् शतं देवीमन्दिरे मोदते परे ॥
यथा तथा भवेद्बद्धः सङ्ग्रामेऽन्यत्र वा बुधः ।
तत्क्षणादेव मुक्तः स्यात् स्मारणात् कवचस्य तु ॥
॥ इति श्री कामाख्या कवचम् सम्पूर्णम ॥
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