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Ekakshara Ganapati Kavacham || एकाक्षर गणपति कवचम् : Full Lyrics in Sanskrit
Ekakshara Ganapati Kavacham (एकाक्षर गणपति कवचम्)
एकाक्षर गणपति कवचम्: एकाक्षर गणपति कवचम् भगवान गणेश की दिव्य उपस्थिति और सुरक्षा को बुलाने वाला एक शक्तिशाली कवच है। यह कवच एक अक्षर की शक्ति के साथ गणपति की महिमा को समाहित करता है, जो उनकी कृपा और संरक्षण प्रदान करता है। गणेश पूजा और एकाक्षर गणपति कवचम् का संगम: गणेश पूजा में एकाक्षर गणपति कवचम् का समावेश एक दिव्य संगति उत्पन्न करता है। यह पूजा में गणपति के आशीर्वाद और सुरक्षा ऊर्जा को आमंत्रित करने का प्रभावशाली माध्यम बनता है। इस कवच का पाठ गणपति की कृपा को प्राप्त करने का एक शक्तिशाली तरीका है, जिससे पूजा अधिक शुभ और फलदायक हो जाती है।|| एकाक्षर गणपति कवचम् ||
(Ekakshara Ganapati Kavacham)
श्रीगणेशाय नमः ।
नमस्तस्मै गणेशाय सर्वविघ्नविनाशिने ।
कार्यारम्भेषु सर्वेषु पूजितो यः सुरैरपि ॥ १॥
पार्वत्युवाच ।
भगवन् देवदेवेश लोकानुग्रहकारकः ।
इदानी श्रोतृमिच्छामि कवचं यत्प्रकाशितम् ॥ २॥
एकाक्षरस्य मन्त्रस्य त्वया प्रीतेन चेतसा ।
वदैतद्विधिवद्देव यदि ते वल्लभास्म्यहम् ॥ ३॥
ईश्वर उवाच ।
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि नाख्येयमपि ते ध्रुवम् ।
एकाक्षरस्य मन्त्रस्य कवचं सर्वकामदम् ॥ ४॥
यस्य स्मरणमात्रेण न विघ्नाः प्रभवन्ति हि ।
त्रिकालमेककालं वा ये पठन्ति सदा नराः ॥ ५॥
तेषां क्वापि भयं नास्ति सङ्ग्रामे सङ्कटे गिरौ ।
भूतवेतालरक्षोभिर्ग्रहैश्चापि न बाध्यते ॥ ६॥
इदं कवचमज्ञात्वा यो जपेद् गणनायकम् ।
न च सिद्धिमाप्नोति मूढो वर्षशतैरपि ॥ ७॥
अघोरो मे यथा मन्त्रो मन्त्राणामुत्तमोत्तमः ।
तथेदं कवचं देवि दुर्लभं भुवि मानवैः ॥ ८॥
गोपनीयं प्रयत्नेन नाज्येयं यस्य कस्यचित् ।
तव प्रीत्या महेशानि कवचं कथ्यतेऽद्भुतम् ॥ ९॥
एकाक्षरस्य मन्त्रस्य गणकश्चर्षिरीरितः ।
त्रिष्टुप् छन्दस्तु विघ्नेशो देवता परिकीर्तिता ॥ १०॥
गँ बीजं शक्तिरोङ्कारः सर्वकामार्थसिद्धये ।
सर्वविघ्नविनाशाय विनियोगस्तु कीर्तितः ॥ ११॥
ध्यानम् ।
रक्ताम्भोजस्वरूपं लसदरुणसरोजाधिरूढं त्रिनेत्रं पाशं
चैवाङ्कुशं वा वरदमभयदं बाहुभिर्धारयन्तम् ।
शक्त्या युक्तं गजास्यं पृथुतरजठरं नागयज्ञोपवीतं देवं
चन्द्रार्धचूडं सकलभयहरं विघ्नराजं नमामि ॥ १२॥
कवचम् ।
गणेशो मे शिरः पातु भालं पातु गजाननः ।
नेत्रे गणपतिः पातु गजकर्णः श्रुती मम ॥ १३॥
कपोलौ गणनाथस्तु घ्राणं गन्धर्वपूजितः ।
मुखं मे सुमुखः पातु चिबुकं गिरिजासुतः ॥ १४॥
जिह्वां पातु गणक्रीडो दन्तान् रक्षतु दुर्मुखः ।
वाचं विनायकः पातु कष्टं पातु महोत्कटः ॥ १५॥
स्कन्धौ पातु गजस्कन्धो बाहू मे विघ्ननाशनः ।
हस्तौ रक्षतु हेरम्बो वक्षः पातु महाबलः ॥ १६॥
हृदयं मे गणपतिरुदरं मे महोदरः ।
नाभि गम्भीरहृदयः पृष्ठं पातु सुरप्रियः ॥ १७॥
कटिं मे विकटः पातु गुह्यं मे गुहपूजितः ।
ऊरु मे पातु कौमारं जानुनी च गणाधिपः ॥ १८॥
जङ्घे गजप्रदः पातु गुल्फौ मे धूर्जटिप्रियः ।
चरणौ दुर्जयः पातुर्साङ्गं गणनायकः ॥ १९॥
आमोदो मेऽग्रतः पातु प्रमोदः पातु पृष्ठतः ।
दक्षिणे पातु सिद्धिशो वामे विघ्नधरार्चितः ॥ २०॥
प्राच्यां रक्षतु मां नित्यं चिन्तामणिविनायकः ।
आग्नेयां वक्रतुण्डो मे दक्षिणस्यामुमासुतः ॥ २१॥
नैरृत्यां सर्वविघ्नेशः पातु नित्यं गणेश्वरः ।
प्रतीच्यां सिद्धिदः पातु वायव्यां गजकर्णकः ॥ २२॥
कौबेर्यां सर्वसिद्धिशः ईशान्यामीशनन्दनः ।
ऊर्ध्वं विनायकः पातु अधो मूषकवाहनः ॥ २३॥
दिवा गोक्षीरधवलः पातु नित्यं गजाननः ।
रात्रौ पातु गणक्रीडः सन्ध्योः सुरवन्दितः ॥ २४॥
पाशाङ्कुशाभयकरः सर्वतः पातु मां सदा ।
ग्रहभूतपिशाचेभ्यः पातु नित्यं गजाननः ॥ २५॥
सत्वं रजस्तमो वाचं बुद्धिं ज्ञानं स्मृतिं दयाम् ।
धर्मचतुर्विधं लक्ष्मीं लज्जां कीर्तिं कुलं वपुः ॥ २६॥
धनं धान्यं गृहं दारान् पौत्रान् सखींस्तथा ।
एकदन्तोऽवतु श्रीमान् सर्वतः शङ्करात्मजः ॥ २७॥
सिद्धिदं कीर्तिदं देवि प्रपठेन्नियतः शुचिः ।
एककालं द्विकालं वापि भक्तिमान् ॥ २८॥
न तस्य दुर्लभं किञ्चित् त्रिषु लोकेषु विद्यते ।
सर्वपापविनिर्मुक्तो जायते भुवि मानवः ॥ २९॥
यं यं कामयते नित्यं सुदुर्लभमनोरथम् ।
तं तं प्राप्नोति सकलं षण्मासान्नात्र संशयः ॥ ३०॥
मोहनस्तम्भनाकर्षमारणोच्चाटनं वशम् ।
स्मरणादेव जायन्ते नात्र कार्या विचारणा ॥ ३१॥
सर्वविघ्नहरं देवं ग्रहपीडानिवारणम् ।
सर्वशत्रुक्षयकरं सर्वापत्तिनिवारणम् ॥ ३२॥
धृत्वेदं कवचं देवि यो जपेन्मन्त्रमुत्तमम् ।
न वाच्यते स विघ्नौघैः कदाचिदपि कुत्रचित् ॥ ३३॥
भूर्जे लिखित्वा विधिवद्धारयेद्यो नरः शुचिः ।
एकबाहो शिरः कण्ठे पूजयित्वा गणाधिपम् ॥ ३४॥
एकाक्षरस्य मन्त्रस्य कवचं देवि दुर्लभम् ।
यो धारयेन्महेशानि न विघ्नैरभिभूयते ॥ ३५॥
गणेशहृदयं नाम कवचं सर्वसिद्धिदम् ।
पठेद्वा पाठयेद्वापि तस्य सिद्धिः करे स्थिता ॥ ३६॥
न प्रकाश्यं महेशानि कवचं यत्र कुत्रचित् ।
दातव्यं भक्तियुक्ताय गुरुदेवपराय च ॥ ३७॥
॥ इति श्रीरुद्रयामले एकाक्षरगणपतिकवचं अथवा त्रैलोक्यमोहनकवचं सम्पूर्णम् ॥
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