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Shri Hanuman Stotram || श्री हनुमत्स्तोत्रम् : The Ultimate Guide to Shri Hanuman Stotram : For Fearlessness, Prosperity, and Peace
Shri Hanuman Stotram (श्री हनुमत्स्तोत्रम्)
Hanuman ji Stotra मंगलवार का दिन भगवान हनुमान की पूजा के लिए बेहद शुभ माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि जो भक्त संकट मोचन को प्रसन्न करना चाहते हैं या फिर उनकी पूरी कृपा पाना (Hanuman ji Puja Vidhi) चाहते हैं तो उन्हें प्रत्येक दिन श्री हनुमान स्तोत्र का पाठ जरूर करना चाहिए जो इस प्रकार हैं- श्री हनुमत्स्तोत्रम् (Shri Hanuman Strotram)
लाङ्गूलमृष्टवियदम्बुधिमध्यमार्गमुत्प्लुत्य यान्तममरेन्द्रमुदो निदानम् ।
आस्फालितस्वक भुजस्फुटिताद्रिकाण्डं द्रामैथिलीनयननन्दनमद्य वन्दे ॥१॥
मध्येनिशाचरमहाभयदुर्विषह्यं घोराद्भुतव्रतमियं यददश्चचार ।
पत्ये तदस्य बहुधापरिणामदूतं सीतापुरस्कृततनुं हनुमन्तमीडे ॥२॥
यः पादपङ्कजयुगं रघुनाथपल्या नैराश्यरूषितविरक्तमपि स्वरागैः ।
प्रागेव रागि विदधे बहु वन्दमानो वन्देऽञ्जनाजनुषमेष विशेषतुष्ट्यै ॥३॥
ताञ्जानकीविरहवेदन हेतुभूतान् द्रागाकलय्य सदशोकवनीयवृक्षान् ।
लङ्कालकानिव घनानुदपाट्यद्यस्तं हेमसुन्दरकपिं प्रणमामि पुष्ट्यै ॥४॥
घोषप्रतिध्वनितशैलगुहासहस्त्रसम्भ्रान्तनादितवलन्मृगनाथयूथम् ।
अक्षक्षय क्षणविलक्षितराक्षसेन्द्रमिन्द्रं कपीन्द्रपृतनावलयस्य वन्दे ॥५॥
हेलाविलङ्घितमहार्णवमप्यमन्दं घूर्ण गदाविहतिविक्षतराक्षसेषु ।
स्वम्मोदवारिधिमपारमिवेक्षमाणं वन्देऽहमक्षयकुमारकमारकेशम् ॥६॥
जम्भारिजित्प्रसभलम्भितपाशबन्धं ब्रह्मानुरोधमिव तत्क्षणमुद्वहन्तम् ।
रौद्रावतारमपि रावणदीर्घदृष्टिसङ्कोचकारणमुदारहरि भजामि ॥७॥
दर्पोन्नमन्निशिचरेश्वरमूर्धचञ्चत्कोटीरचुम्बि निजविम्बमुदीक्ष्य हृष्टम् ।
पश्यन्तमात्मभुजयन्त्रणपिष्यमाणतत्कायशोणितनिपातमपेक्षि वक्षः ॥८॥
अक्षप्रभृत्यमरविक्रमवीरनाश- क्रोधादिव द्रुतमुदञ्चितचन्द्रहासाम् ।
निद्रापिताभ्रघनगर्जनघोरघोषैः संस्तम्भयन्तमभिनौमि दशास्यमूर्तिम् ॥९॥
आशंस्यमानविजयं रघुनाथधाम शंसन्तमात्मकृतभूरिपराक्रमेण ।
दौत्ये समागमसमन्वयमादिशन्तं वन्दे हरेः क्षितिभृतः पृतनाप्रधानम् ॥१०॥
यस्यौचितीं समुपदिष्टवतोऽधिपुच्छं दम्भान्धितां धियमपेक्ष्य विवर्धमानः ।
नक्तञ्चराधिपतिरोषहिरण्यरेता लङ्कां दिधक्षुरपतत्तमहं वृणोमि ॥ ११ ॥
क्रन्दन्निशाचरकुलां ज्वलनावलीढैः साक्षाद्गृहैरिव बहिः परिदेवमानाम् ।
स्तब्धस्वपुच्छतटलग्नकृपीटयोनिदन्दह्यमाननगरीं परिगाहमानाम् ॥ १२ ॥
मूर्तेर्गृहासुभिरिव द्युपुरं व्रजद्भि- व्योंम्प्नि क्षणं परिगतं पतगैर्ध्वलद्भिः ।
पीताम्बरं दधतमुच्छ्रितदीप्ति पुच्छं सेनां वहद्विहगराजमिवाहमीडे ॥ १३ ॥
स्तम्भीभवत्स्वगुरुवालधिलग्नवह्नि- ज्वालोल्ललद्ध्वजपटामिव देवतुष्ट्यै ।
वन्दे यथोपरि पुरो दिवि दर्शयन्त- मद्यैव रामविजयाजिकवैजयन्तीम् ॥१४॥
रक्षश्चयैकचितकक्षकपूश्चितौ यः सीताशुचो निजविलोकनतो मृतायाः ।
दाहं व्यधादिव तदन्त्यविधेयभूतं लाङ्गूलदत्तदहनेन मुदे स नोऽस्तु ॥१५॥
आशुद्धये रघुपतिप्रणयैकसाक्ष्ये वैदेहराजदुहितुः सरिदीश्वराय ।
न्यासं ददानमिव पावकमापतन्त- मब्धौ प्रभञ्जनतनूजनुषं भजामि ॥१६॥
रक्षस्स्वतृप्तिरुडशान्तिविशेषशोण- मक्षक्षयक्षणविधानुमितात्मदाक्ष्यम् ।
भास्वत्प्रभातरविभानुभरावभासं लङ्काभयङ्करममुं भगवन्तमीडे ।।१७।।
तीर्वोदधिं जनकजार्पितमाप्य चूडा- रत्नं रिपोरपि पुरं परमस्य दग्ध्वा।
श्रीरामहर्षगलदश्वभिषिच्यमानं तं ब्रह्मचारिवरवानरमाश्रयेऽहम् ॥१८॥
यः प्राणवायुजनितो गिरिशस्य शान्तः शिष्योऽपि गौतमगुरुर्मुनिशङ्करात्मा।
हृद्यो हरस्य हरिवद्धरितां गतोऽपि धीधैर्यशास्त्रविभवेऽतुलमाश्रये तम्॥१९॥
स्कन्धेऽधिवाह्य जगदुत्तरगीतिरीत्या यः पार्वतीश्वरमतोषयदाशुतोषम् ।
तस्मादवाप च वरानपरानवाप्यान् तं वानरं परमवैष्णवमीशमीडे ॥ २० ॥
उमापतेः कविपतेः स्तुतिर्बाल्यविजृम्भिता ।
हनूमतस्तुष्टयेऽस्तु वीरविंशतिकाभिधा ॥
इति श्रीकविपत्युपनामकोमापतिशर्मद्विवेदिविरचितं वीरविंशतिकाख्यं
श्रीहनुमत्स्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
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