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Tantroktam Devi Suktam || तन्त्रोक्तम् देवीसूक्तम् : Full Lyrics in Sanskrit with Meaning
Tantroktam Devi Suktam (तन्त्रोक्तम् देवीसूक्तम्)
तन्त्रोक्तम् देवीसूक्तम् एक पवित्र स्तोत्र (sacred hymn) है, जो देवी दुर्गा (Goddess Durga) की महिमा का वर्णन करता है। इसका पाठ (recitation) करने से व्यक्ति को नकारात्मक ऊर्जा (negative energy) और बुरी नजर (evil eye) से सुरक्षा मिलती है। यह स्तोत्र साधकों (spiritual seekers) के लिए विशेष रूप से उपयोगी है, जो आध्यात्मिक शक्ति (spiritual power) और आत्मबल (inner strength) प्राप्त करना चाहते हैं। इस स्तोत्र में देवी के शक्तिशाली (powerful) और रक्षात्मक (protective) रूप का वर्णन है, जो भक्तों को भय (fear) और बाधाओं (obstacles) से मुक्ति प्रदान करता है। तन्त्रोक्तम् देवीसूक्तम् का पाठ जीवन में शांति (peace) और समृद्धि (prosperity) लाने में सहायक है। यह स्तोत्र देवी के क्रोधमयी (fierce) और दयालु (compassionate) रूप की आराधना करता है। देवीसूक्तम् का नियमित पाठ (regular recitation) करने से व्यक्ति को सफलता (success) और सुख (happiness) प्राप्त होता है। यह स्तोत्र देवी के आशीर्वाद (blessings of Goddess) को आकर्षित करता है और जीवन में शक्ति (strength) और स्थिरता (stability) प्रदान करता है। भक्त इसे तंत्र साधना (Tantric practices) के माध्यम से जीवन के सभी कष्टों (hardships) से मुक्ति पाने के लिए करते हैं। तन्त्रोक्तम् देवीसूक्तम् [ वाक्-सूक्त ]
[भगवती पराम्बाके अर्चन-पूजनके साथ “देवीसूक्त” के पाठको विशेष महिमा है । ऋग्वेदके दशय मण्डलका १२५वाँ सूक्त 'वाकु-यूक्त” कहलाता हे । इसे ˆआत्मसूक्त ' भी कहते हैं। इसमें अम्भ्रणऋछषिको पुत्री वाक् ब्रह्मसाक्षात्कारसे सम्पन होकर अपनी सर्वात्मिद्ृष्टिको अभिव्यक्त कर रही हैं। ब्रह्मविद्की वाणी ब्रह्मसे वादात्म्यापन्नन होकर अपने-आपको ही सर्वात्माके रूपमे वर्णन कर रही हैं। ये ब्रह्मस्वरूपा वाग्देवी ब्रह्मानुधवी जीवन्मुक्त महापुरुषकी ब्रह्ममयी प्रज्ञा ही हैं। इस यूक्तमें प्रतिपाद्य-प्रतिपादकका ऐकात्म्य-सम्बन्ध दर्शाया गया है। यह सूक्त सानुवाद यहाँ प्रस्तुत है- ]
ॐ अहे रुद्रभिर्वसुभिश्चराम्यहमादित्यैरुत विश्वदेवैः ।
अहं मित्रावरुणोभा बिभर्म्यहमिन्द्राग्नी अहमश्विनोभा ॥ ९॥
अहं सोममाहनसं बिभर्म्यहं त्वष्टारमुत पूषणं भगम्।
अहं दधामि द्रविणं हविष्मते सुप्राव्ये यजमानाय सुन्वते ॥ २॥
अहं राष्टी संगमनी वसूनां चिकितुषी प्रथमा यज्ञियानाम्।
तां मा देवा व्यदधुः पुरुत्रा भूरिस्थात्रां भू्यविशयन्तीम्॥ ३ ॥
मया सो अनमत्ति यो विपश्यति यः प्राणिति य ई शृणोत्युक्तम् ।
अमन्तवो मां त उप क्षियन्ति श्रुधि श्रुत श्रद्धिवं ते वदामि ॥ ४॥
अहमेव स्वयमिदं वदामि जुष्टं देवेभिरुत मानुषेभिः।
यं कामये तं तमुग्रं कृणोमि तं ब्रह्मणं तमृषिं तं सुमेधाम्॥ ५॥
अहं रुद्राय धनुरा तनोमि ब्रह्मद्धिषि शरवे हन्तवा उ।
अहं जनाय समदं कृणोम्यहं द्यावापृथिवी आ विवेश॥ ६॥
अहं सुवे पितरमस्य पूर्धन् मम योनिरप्स्वन्तः समुद्रे ।
ततो वि तिष्ठे भुवनानु विश्वोतामूं द्यां वर्ष्मणोप स्पृशामि ॥ ७॥
अहमेव वात इव प्रवाम्यारभमाणा भुवनानि विश्वा।
परो दिवा पर एना पृथिव्यैतावती महिना संबभूव ॥ ८ ॥
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देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम्, माँ दुर्गा का एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है। इसे आदि गुरु शंकराचार्य ने लिखा था। यह उनकी सर्वश्रेष्ठ और कानों को सुख देने वाली स्तुतियों में से एक है। यह एक क्षमा स्तोत्र है जिसमें साधक माता से कहता है कि सबका उद्धार करनेवाली कल्याणमयी माता ! मैं पूजा की विधि नहीं जानता , मेरे पास धन का भी अभाव है , मैं स्वभाव से भी आलसी हूँ तथा मुझ से ठीक–ठीक पूजा का सम्पादन हो भी नहीं सकता। इन सब कारणों से तुम्हारे चरणों की सेवा में जो त्रुटी हो गयी है, उसे क्षमा करना, क्योंकि कुपुत्र होना सम्भव है, किंतु कहीं भी कुमाता नहीं होती। अत: मुझसे कोई भी गलती हुई हो तो मुझे क्षमा कर देना।Stotra
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