Mokshada Ekadashi (मोक्षदा एकादशी) Date:- 2024-12-11

मोक्षदा एकादशी परबुधवार, 11 दिसंबर, 2024 (Mokshada Ekadashi on Wednesday, December 11, 2024) On 12th Dec, Parana Time - 06:28 AM to 08:33 AM On Parana Day Hari Vasara End Moment - 06:28 AM एकादशी तिथि प्रारम्भ - 03:42 AM on Dec 11, 2024 एकादशी तिथि समाप्त - 01:09 AM on Dec 12, 2024 एकादशी व्रत का भोजन एकादशी व्रत का प्रकार व्यक्ति की इच्छा शक्ति और शारीरिक क्षमता के अनुसार तय किया जा सकता है। धार्मिक ग्रंथों में चार प्रमुख प्रकार के एकादशी व्रत बताए गए हैं: जलाहार व्रत: इस व्रत में केवल जल का सेवन किया जाता है। अधिकांश भक्त निर्जला एकादशी पर इस व्रत का पालन करते हैं, लेकिन इसे सभी एकादशी व्रतों पर रखा जा सकता है। क्षीरभोजी व्रत: इस व्रत में दूध और दूध से बने सभी उत्पादों का सेवन किया जाता है। इसमें दूध, घी, दही, माखन आदि शामिल हैं। फलाहारी व्रत: इस व्रत में केवल फलाहार किया जाता है, जैसे कि आम, अंगूर, केला, बादाम, पिस्ता आदि। पत्तेदार सब्जियां और अन्य खाद्य पदार्थ वर्जित होते हैं। नक्तभोजी व्रत: इस व्रत में सूर्यास्त से ठीक पहले दिन में एक बार भोजन किया जाता है, जिसमें अनाज या अनाज से बने खाद्य पदार्थ नहीं होते, जैसे सेम, गेहूं, चावल और दालें। नक्तभोजी व्रत के लिए मुख्य आहार एकादशी व्रत के दौरान नक्तभोजी व्रत के लिए मुख्य आहार में शामिल हैं: साबूदाना: साबूदाने की खिचड़ी या खीर। सिंघाड़ा: पानी के कैल्ट्रोप और चेस्टनट के रूप में भी जाना जाता है। शकरकंदी: शकरकंदी की सब्जी या चाट। आलू: आलू के विभिन्न प्रकार के व्यंजन। मूंगफली: मूंगफली की चटनी या शकरकंदी के साथ। विवादित आहार कुट्टू आटा (बकव्हीट आटा) और सामक (बाजरा चावल) भी एकादशी के भोजन में शामिल होते हैं। हालांकि, इनकी वैधता पर विवाद है, क्योंकि इन्हें अर्ध-अनाज या छद्म अनाज माना जाता है। इसलिए उपवास के दौरान इनसे बचना बेहतर माना जाता है। इस प्रकार, एकादशी व्रत का पालन करते समय इन विविध प्रकार के व्रतों और आहार का ध्यान रखना चाहिए, जिससे धार्मिक नियमों का सटीक पालन हो सके।मोक्षदा एकादशी कब और कैसे मनाई जाती है? मोक्षदा एकादशी मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इसे गीता जयंती के नाम से भी जाना जाता है और इस दिन भगवद गीता के उपदेशों का स्मरण किया जाता है। मोक्षदा एकादशी का पौराणिक महत्व क्या है? मोक्षदा एकादशी का पौराणिक महत्व भगवान श्रीकृष्ण के गीता उपदेश से जुड़ा है। यह माना जाता है कि इस दिन भगवद गीता का उपदेश अर्जुन को दिया गया था। इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उसके सभी पापों का नाश होता है। मोक्षदा एकादशी की तैयारी कैसे होती है? मोक्षदा एकादशी की तैयारी में लोग अपने घरों को साफ-सुथरा रखते हैं और विशेष पूजा सामग्री का प्रबंध करते हैं। पूजा की थाली में तिल, जल, पुष्प, धूप, दीपक, और भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र शामिल होते हैं। इस दिन लोग ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके व्रत का संकल्प लेते हैं। मोक्षदा एकादशी का उत्सव कैसे मनाया जाता है? मोक्षदा एकादशी के दिन लोग उपवास रखते हैं और भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। इस दौरान विष्णु सहस्रनाम का पाठ किया जाता है और विष्णु मंत्रों का जाप किया जाता है। शाम को दीपदान किया जाता है और भगवान विष्णु को भोग लगाया जाता है। व्रतधारी रात को जागरण करते हैं और भगवान का स्मरण करते हैं। मोक्षदा एकादशी का समग्र महत्व क्या है? मोक्षदा एकादशी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं का एक अभिन्न हिस्सा है। यह पर्व धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है और समाज में धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को बढ़ावा देता है।मोक्षदा एकादशी ब्रह्मांड पुराणमें मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष में आनेवाली मोक्षदा एकादशी का महात्म्य भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर से कहते है ! युधिष्ठिर महाराजने पूछा, "हे देवदेवेश्वर ! मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्षमें आनेवाली एकादशी का क्या नाम है? उसे किसप्रकार करना चाहिए, किस देवताको पूजना चाहिए ? कृपया इस विषयपर विस्तार से कहें !" भगवान श्रीकृष्णने कहा, "मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष में आनेवाली एकादशी मोक्षदा कहलाती है। इसकी महिमा सुननेसे वाजपेय यज्ञका फल प्राप्त होता है ! यह एकादशी पापहरण करती है! हे राजन् ! इस दिन तुलसी मंजरी और धूप-दीप के साथ भगवान दामोदर की पूजा करनी चाहिए ! बडे बडे पातकों को नष्ट करनेवाली मोक्षदा एकादशी की रात्रि में मेरी प्रसन्नता के लिए नृत्य, कीर्तन तथा कथा करके जागरण करना चाहिए ! जिनके पूर्वज नरकमें है, वे इस एकादशीके पूण्य को पूर्वजोंको दान करनेसे उनको मोक्ष की प्राप्ति होती है !" प्राचीन काल में वैष्णव निवासीत रमणीय चम्पक नगरमें वैखानस महाराज राज्य करते थे ! वे अपनी प्रजाका संतान की भाँति पालन करते थे ! एक रातको उन्होंने स्वप्न में देखा कि उनके पितर नीच नरक योनि में है ! अपने पितरोंकी इस अवस्था से आश्चर्यचकित होकर अगले प्रातःकाल में ब्राह्मणोंको बुलाकर उस स्वप्न के बारे में कहा !ि महाराज ने कहा, "हे ब्राह्मणो ! मैने अपने पितरोंको नरक में देखा है ! बारबार रूदन-क्रंदन करते हुए मुझे कह रहे थे तुम हमारे तनुज हो, तुम ही हमें इस स्थिति से निकाल सकते हो ! हे द्विजवर ! मैं उनकी इस अवस्थासे अत्यंत विचलित हूँ ! क्या करना चाहिए ? कहाँ जाना चाहिए ? कुछ समझ में नही आता! हे द्विजश्रेष्ठ ! कौनसा व्रत, तप या योग करनेसे मेरे पूर्वजोंका नरकसे उद्धार होगा, कृपया मुझसे कहिए ! मेरे जैसा बलवान और साहसी पुत्र होते हुए भी मेरे माता-पिता नरक में हो, तो मेरा जीवन व्यर्थ है ?" ब्राह्मण कहने लगे, "राजन् ! निकट ही पर्वतमुनिंका आश्रम है, उन्हे भूत- भविष्य ज्ञात है ! हे नृपश्रेष्ठ ! आप उनके पास जाईये !" ब्राह्मणोंकी बात सुनकर तत्काल राजा पर्वतमुनिकें आश्रम में गये और मुनिंको दंडवत करके उनके चरणस्पर्श किए ! मुनिने भी राजा का कुशलक्षेम पुछा ! महाराज कहने लगे, "स्वामिन् ! आपकी कृपासे राज्य में सब कुशल है ! किंतु मैंने स्वप्न में देखा कि मेरे पूर्वज नरकमें है! कौनसे पुण्यसे उनको मुक्ति मिलेगी कृपया आप कहिए !" राजाके वचन सुनकर मुनि कुछ काल ध्यानस्थ हुए और राजा से कहा, "महाराज ! मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष को मोक्षदा एकादशी आती है ! उस व्रतका आप सभी पालन करके उसका पुण्य पूर्वजोंको दान कीजिए ! उस पुण्य के प्रभावसे उनकी नरकसे मुक्ति होगी!" भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा, "हे युधिष्ठिर ! मुनि के वचन सुनते ही राजा ने घर लौटकर एकादशी व्रत को धारण करके उसका पुण्य अपने पितरोंको दान किया ! उस पुण्य के दान करतेही आकाशसे पुष्पवृष्टि हुई ! वैखानस महाराजाके पिता-पूर्वज नरकसे बाहर निकल के आकाशमें आए और राजा को कहा, "पुत्र ! तुम्हारा कल्याण हो !" इस आशीर्वाद को देकर वे सब स्वर्गं में गए ! इस प्रकार जो कोई चिंतामणीसमान इस एकादशी का व्रत करेगा उसे मृत्यु के बाद मोक्ष मिलेगा ! जो इस महात्म्य को सुनेगा, पढेगा उसे वाजपेय यज्ञ के फल की प्राप्ति होगी !

Recommendations

Narayaniyam Dashaka 55 (नारायणीयं दशक 55)

नारायणीयं दशक 55 भगवान विष्णु के भक्तों के प्रति अनुग्रह और उनकी दिव्य लीलाओं का वर्णन करता है। यह अध्याय भगवान विष्णु की महिमा और उनकी असीम कृपा का वर्णन करता है।
Narayaniyam-Dashaka

Bhagawati Kali Puja Vidhi (भगवती काली पूजा विधि)

भगवती काली पूजा विधि देवी काली की पूजा करने का तरीका बताने वाला एक महत्वपूर्ण पाठ है। यह विधि भक्तों को देवी काली की कृपा प्राप्त करने के लिए सही तरीके से पूजा करने में मदद करती है।
Puja-Vidhi

Durga Saptashati Chapter 3 (दुर्गा सप्तशति तृतीयोऽध्यायः) देवी माहात्म्यं

दुर्गा सप्तशति तृतीयोऽध्यायः: यह देवी दुर्गा के माहात्म्य का वर्णन करने वाला तीसरा अध्याय है।
Durga-Saptashati-Sanskrit

Siddha Kunjika Stotram (सिद्ध कुंजिका स्तोत्रम्)

सिद्ध कुंजिका स्तोत्रम्: यह स्तोत्र देवी दुर्गा को समर्पित है और उनके अद्भुत शक्तियों का वर्णन करता है।
Stotra

Narayaniyam Dashaka 6 (नारायणीयं दशक 6)

नारायणीयं दशक 6 में भगवान नारायण की भक्तों पर कृपा और आशीर्वाद की प्राप्ति की प्रार्थना की गई है। यह दशक भक्तों को भगवान के प्रेम और करुणा की विशेषता को समझाता है।
Narayaniyam-Dashaka

Mukunda Mala Stotram (मुकुंदमाला स्तोत्रम्)

संत राजा कुलशेखर की प्रार्थनाएं भगवान श्रीकृष्ण से उनकी सेवा का वरदान मांगती हैं। Mukunda-mala-stotra, जिसे राजा कुलशेखर ने एक हजार वर्ष पूर्व लिखा था, आज भी truth की ताजगी के साथ हमें संबोधित करता है। यह एक realized soul की आवाज़ है, जो अत्यंत sincerity के साथ Lord Krishna और हमसे संवाद करता है। राजा कुलशेखर सभी से disease of birth and death का उपचार सुनने का आह्वान करते हैं। Mukunda-mala-stotra उनके devotion to Krishna और इस शुभ अनुभव को सभी के साथ साझा करने की eagerness का सीधा और सरल expression है।
Stotra

Eighteen Shaktipeeth Stotram (अष्टादश शक्तिपीठ स्तोत्रम्)

श्री आदि शंकराचार्य ने इस अष्टदशा शक्ति पीठ स्तोत्रम की रचना की। अष्टदशा शक्ति पीठ स्तोत्रम एक पवित्र स्तोत्र है जिसमें 18 शक्तिपीठों और वहां पूजी जाने वाली देवी-देवताओं के नामों का उल्लेख है। इसकी रचना श्री आदि शंकराचार्य ने की थी। अष्टदशा का शाब्दिक अर्थ अठारह होता है। अष्टदशा शक्ति पीठ भारतीय उपमहाद्वीप में 18 पवित्र स्थान हैं जहाँ देवी शक्ति/पार्वती/गौरी की पूजा की जाती है। दक्ष यज्ञ के दौरान आग में कूदकर सती की मृत्यु हो जाने के बाद, भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने दक्ष को मार डाला। भगवान शिव को उनकी सामान्य स्थिति में वापस लाने के लिए, भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र छोड़ा, जिसने सती के मृत शरीर को 18 टुकड़ों में विभाजित कर दिया, जो उपमहाद्वीप में 18 अलग-अलग स्थानों पर गिरा। ये 18 स्थान 18 शक्ति पीठ या अष्टदशा शक्ति पीठ हैं, जहाँ देवी पार्वती की अलग-अलग रूपों में पूजा की जाती है।
Stotra

Raksha Bandhan Puja Vidhi (रक्षा बंधन पूजा विधि)

रक्षा बंधन पूजा विधि रक्षा बंधन के अवसर पर पूजा करने का तरीका बताने वाला एक महत्वपूर्ण पाठ है। यह विधि भाई-बहन के रिश्ते की महिमा का वर्णन करती है और इस पर्व पर सही तरीके से पूजा करने में मदद करती है।
Puja-Vidhi