Devutthana Ekadashi (देवउठनी एकादशी) Date:- 2024-11-12

Devutthana Ekadashi on Tuesday, November 12, 2024 (12 नवंबर 2024, मंगलवार को देवउत्थान एकादशी) On 13th Nov, Parana Time - 06:06 AM to 08:17 AM On Parana Day Dwadashi End Moment - 01:01 PM एकादशी तिथि प्रारम्भ - 06:46 PM on Nov 11, 2024 एकादशी तिथि समाप्त - 04:04 PM on Nov 12, 2024 एकादशी व्रत का भोजन एकादशी व्रत का प्रकार व्यक्ति की इच्छा शक्ति और शारीरिक क्षमता के अनुसार तय किया जा सकता है। धार्मिक ग्रंथों में चार प्रमुख प्रकार के एकादशी व्रत बताए गए हैं: जलाहार व्रत: इस व्रत में केवल जल का सेवन किया जाता है। अधिकांश भक्त निर्जला एकादशी पर इस व्रत का पालन करते हैं, लेकिन इसे सभी एकादशी व्रतों पर रखा जा सकता है। क्षीरभोजी व्रत: इस व्रत में दूध और दूध से बने सभी उत्पादों का सेवन किया जाता है। इसमें दूध, घी, दही, माखन आदि शामिल हैं। फलाहारी व्रत: इस व्रत में केवल फलाहार किया जाता है, जैसे कि आम, अंगूर, केला, बादाम, पिस्ता आदि। पत्तेदार सब्जियां और अन्य खाद्य पदार्थ वर्जित होते हैं। नक्तभोजी व्रत: इस व्रत में सूर्यास्त से ठीक पहले दिन में एक बार भोजन किया जाता है, जिसमें अनाज या अनाज से बने खाद्य पदार्थ नहीं होते, जैसे सेम, गेहूं, चावल और दालें। ### नक्तभोजी व्रत के लिए मुख्य आहार एकादशी व्रत के दौरान नक्तभोजी व्रत के लिए मुख्य आहार में शामिल हैं: साबूदाना: साबूदाने की खिचड़ी या खीर। सिंघाड़ा: पानी के कैल्ट्रोप और चेस्टनट के रूप में भी जाना जाता है। शकरकंदी: शकरकंदी की सब्जी या चाट। आलू: आलू के विभिन्न प्रकार के व्यंजन। मूंगफली: मूंगफली की चटनी या शकरकंदी के साथ। विवादित आहार कुट्टू आटा (बकव्हीट आटा) और सामक (बाजरा चावल) भी एकादशी के भोजन में शामिल होते हैं। हालांकि, इनकी वैधता पर विवाद है, क्योंकि इन्हें अर्ध-अनाज या छद्म अनाज माना जाता है। इसलिए उपवास के दौरान इनसे बचना बेहतर माना जाता है। इस प्रकार, एकादशी व्रत का पालन करते समय इन विविध प्रकार के व्रतों और आहार का ध्यान रखना चाहिए, जिससे धार्मिक नियमों का सटीक पालन हो सके।देवउठनी एकादशी कब और कैसे मनाई जाती है? देवउठनी एकादशी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इसे प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु चार महीने के योग निद्रा से जागते हैं और इसे भगवान विष्णु की पुनः जागृति के रूप में मनाया जाता है। देवउठनी एकादशी का पौराणिक महत्व क्या है? देवउठनी एकादशी का पौराणिक महत्व भगवान विष्णु के योग निद्रा से जुड़ा है। यह माना जाता है कि भगवान विष्णु आषाढ़ मास की एकादशी को योग निद्रा में चले जाते हैं और कार्तिक मास की एकादशी को जागते हैं। इस दिन से सभी शुभ कार्यों की शुरुआत होती है। देवउठनी एकादशी की तैयारी कैसे होती है? देवउठनी एकादशी की तैयारी में लोग अपने घरों और मंदिरों को सजाते हैं और विशेष पूजा सामग्री का प्रबंध करते हैं। पूजा की थाली में तिल, जल, पुष्प, धूप, दीपक, और भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र शामिल होते हैं। इस दिन लोग ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके व्रत का संकल्प लेते हैं। देवउठनी एकादशी का उत्सव कैसे मनाया जाता है? देवउठनी एकादशी के दिन लोग उपवास रखते हैं और भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। इस दौरान विष्णु सहस्रनाम का पाठ किया जाता है और विष्णु मंत्रों का जाप किया जाता है। शाम को दीपदान किया जाता है और भगवान विष्णु को भोग लगाया जाता है। व्रतधारी रात को जागरण करते हैं और भगवान का स्मरण करते हैं। देवउठनी एकादशी का समग्र महत्व क्या है? देवउठनी एकादशी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं का एक अभिन्न हिस्सा है। यह पर्व धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है और समाज में धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को बढ़ावा देता है।

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Madhura Ashtakam (मधुरा अष्टकम्)

Madhura Ashtakam (मधुरा अष्टकम): श्री कृष्ण माधुराष्टकम् का धार्मिक ग्रंथों में बहुत अधिक महत्व है, और इसमें श्री कृष्ण की "माधुरता" का जो चित्रण किया गया है, वह अन्य सभी स्तुतियों से बिलकुल अलग है। इस छोटे से स्तोत्र में मुरली मनोहर का अद्भुत रूप सामने आता है, साथ ही उनके सर्वव्यापी और भौतिक रूप में उनके भक्तों के प्रति स्नेह का भी वर्णन किया जाता है। यह स्तोत्र श्री वल्लभाचार्य द्वारा 1478 ई. में रचित था, जो भगवान श्री कृष्ण की महान माधुरता का वर्णन करता है। हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। भगवान कृष्ण की पूजा करने से जीवन में सुंदरता, समृद्धि और ऐश्वर्य प्राप्त होता है। माधुराष्टकम् संस्कृत में रचित है और इसे समझना आसान है। इस स्तोत्र में 'मधुरम्' शब्द का बार-बार उपयोग किया गया है, जो भगवान श्री कृष्ण के सुंदर रूप और उनकी माधुरता को व्यक्त करता है। श्री कृष्ण माधुराष्टकम् में कुल 8 श्लोक होते हैं, और हर श्लोक में 'मधुर' शब्द का प्रयोग 7 बार किया गया है। 'आष्ट' का अर्थ है आठ, और 'मधुराष्टकम्' का मतलब है "आठ श्लोकों वाला मधुर स्तोत्र"। इस स्तोत्र में भगवान श्री कृष्ण के रूप, उनके नृत्य, उनके लीला, उनके प्यारे रूप आदि की इतनी सुंदरता और माधुर्यता का वर्णन किया गया है कि भक्त केवल भगवान कृष्ण के रूप को ही नहीं, बल्कि उनके सम्पूर्ण अस्तित्व को भी आकर्षण के रूप में महसूस करते हैं। भगवान श्री कृष्ण के होठ, उनका रूप, उनकी प्यारी मुस्कान, उनकी आँखें, उनका त्रिभंगी रूप, सब कुछ 'मधुर' है। हिंदू मान्यता के अनुसार, श्री कृष्ण माधुराष्टकम् का नियमित पाठ करने से भगवान कृष्ण प्रसन्न होते हैं और उनके आशीर्वाद से जीवन में सुख, समृद्धि और सौंदर्य प्राप्त होता है।
Ashtakam

Durga saptashati(दुर्गा सप्तशती) 11 Chapter (ग्यारहवाँ अध्याय)

दुर्गा सप्तशती एक हिन्दु धार्मिक ग्रन्थ है जिसमें राक्षस महिषासुर पर देवी दुर्गा की विजय का वर्णन है। दुर्गा सप्तशती को देवी महात्म्य, चण्डी पाठ के नाम से भी जाना जाता है। इसमें 700 श्लोक हैं, जिन्हें 13 अध्यायों में बाँटा गया है। दुर्गा सप्तशती का एकादश अध्याय "नारायणी की स्तुति" पर आधारित है।
Durga-Saptashati

Sundarkand (सुन्दरकाण्ड)

सुंदरकांड रामायण का एक महत्वपूर्ण भाग है, जो भगवान श्रीराम के भक्त हनुमान जी द्वारा लंका में सीता माता की खोज के समय की घटनाओं का वर्णन करता है। इसमें Hanuman के साहस, भक्ति, और Sri Ram के प्रति अडिग विश्वास को दर्शाया गया है।
Sundarkand

Shri Khatu Shyam Chalisa (श्री खाटू श्याम चालीसा)

श्री खाटू श्याम चालीसा श्री खाटू श्याम जी के प्रति श्रद्धा और भक्ति व्यक्त करने वाला एक प्रसिद्ध भजन है। यह चालीसा 40 श्लोकों में संकलित है, जो भगवान खाटू श्याममहिमा, गुण और दिव्य शक्तियों का वर्णन करते हैं। भक्तों का विश्वास है कि इस चालीसा का पाठ करने से भगवान श्याम उनकी इच्छाओं को पूर्ण करते हैं, दुःख-दर्द दूर होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। यह चालीसा भगवान की शरण में समर्पण और आस्था का प्रतीक है।
Chalisa

Shri Ram Ashtakam (श्री राम अष्टकम्)

Shri Ram Ashtakam (श्री राम अष्टकम): श्री राम अष्टकम Lord Shri Ram को समर्पित है। Shri Ram Ashtakam की रचना Maharishi Vyasa ने की थी। इसमें Shri Vyasa Ji ने Lord Shri Ram का बहुत सुंदर वर्णन किया है। Shri Ram Ashtakam Sanskrit Language में लिखा गया है। यह Vyasa Muni की एक अद्भुत रचना है। Vyasa Muni इस Shri Ram Ashtakam में कहते हैं कि वे Lord Shri Ram की Worship करते हैं, क्योंकि Shri Ram अपने Devotees के सभी Sins को नष्ट कर देते हैं। Lord Ram हमेशा अपने Devotees को Blissful करते हैं। वे अपने Devotees' Fear को दूर करते हैं। वे True Knowledge के Giver हैं और हमेशा अपने Devotees को Blessings देते हैं। यह Shri Ram Ashtakam का संक्षिप्त अर्थ है। Shri Ram Lord Vishnu के Avatar हैं, जो Ravana के Destruction के लिए Earth पर आए थे। Hindu Tradition में, Lord Ram को Maryada Purushottam माना जाता है, जो Ideal Man हैं और जो Humanity's Perfection का Example प्रस्तुत करते हैं। Lord Krishna के साथ, वे Lord Vishnu के सबसे महत्वपूर्ण Avatars में से एक माने जाते हैं। Lord Vishnu को Dharma's Preserver और Hindu Trimurti का एक प्रमुख अंग माना जाता है। Rama-Centric Sects में, उन्हें Avatar के बजाय Supreme Being माना जाता है। वे Righteousness और Truthful Living के प्रतीक हैं। इसके अतिरिक्त, Lord Ram के दो अर्थ हैं – 1. वह जिन्होंने अपनी इच्छा से दशरथ पुत्र श्रीराम का मोहक रूप धारण किया। 2. Supreme Brahman, जो अनंत Blissful Spiritual Self हैं, जिनमें Yogis तल्लीन रहते हैं। Rishi Vyasa इस Shri Ram Ashtakam में कहते हैं कि वे Lord Ram की Worship करते हैं क्योंकि Shri Ram अपने Devotees' Sins को दूर कर देते हैं। Shri Ram हमेशा अपने Devotees को Happiness प्रदान करते हैं। वे अपने Devotees' Fear को नष्ट करते हैं। Lord Ram's Teachings हमें यह स्मरण कराती हैं कि Happiness and Sorrow, Fear and Anger, Gain and Loss, Life and Death – ये सभी Destiny के अधीन हैं। Shri Ram's Life and Journey हमें सिखाते हैं कि कैसे कठिनतम परिस्थितियों में भी Dharma का पालन करना चाहिए। वे Ideal Man और Perfect Human के रूप में चित्रित किए जाते हैं। Lord Ram ने अपने Gurus से अनेक Spiritual Practices (Sadhanas) सीखी थीं। उन्होंने हमें यह सिखाया कि हमें अपने जीवन के हर क्षेत्र में Dharma और Guru का अनुसरण करना चाहिए।
Ashtakam

Shri Krishna Sharanam mam (श्रीकृष्णः शरणं मम)

श्री कृष्ण शरणम मम: भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण का जन्म मथुरा में देवकी और वसुदेव के घर हुआ था, और उन्हें वृंदावन में नंद और यशोदा ने पाल-पोसा। चंचल और शरारती भगवान श्री कृष्ण की पूजा विशेष रूप से उनकी बाल्य और युवावस्था की रूप में की जाती है, जो भारत और विदेशों में व्यापक रूप से प्रचलित है। श्री कृष्ण शरणम मम: का उच्चारण करके भक्त भगवान श्री कृष्ण की शरण में आते हैं, यह मंत्र श्री कृष्ण की कृपा और संरक्षण प्राप्त करने का एक प्रमुख उपाय माना जाता है।
Stotra

Shri Vishnu Chalisa (श्री विष्णु चालीसा)

विष्णु चालीसा एक भक्ति गीत है जो भगवान विष्णु पर आधारित है। हिन्दू मान्यतानुसार भगवान विष्णु त्रिदेवों में से एक हैं। Vishnu Chalisa का पाठ विशेष रूप से Vaikuntha Ekadashi और अन्य पूजा अवसरों पर किया जाता है। यह divine protection और blessings प्राप्त करने का एक अत्यंत शक्तिशाली साधन है। Vishnu mantra जीवन में peace और spiritual growth को बढ़ावा देता है।
Chalisa

saraswati vandana (सरवस्ती वदना)

सरस्वती वंदना का हिंदु धर्म में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। माँ सरस्वती की वंदना करने से ऐसा माना जाता है कि मुर्ख भी ज्ञानी बन सकते हैं। माँ सरस्वती को हिंदू धर्म की प्रमुख देवियों में से एक माना गया है। इनकी कृपा पाने के लिए संगीतज्ञ, छात्रों और यहां तक की गूढ़ विषयों में रुचि रखने वालों द्वारा भी इनकी वंदना की जाती है। सरस्वती माँ को शारदा, शतरुपा, वीणावादिनी जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता है।
Vandana