Ganesh Chaturthi (गणेश चतुर्थी) Date :- 07.09.2024

Ganesh Chaturthi (गणेश चतुर्थी) 2024 Date :- 07.09.2024 गणेश चतुर्थी शुभ मुहूर्त (Ganesh Chaturthi Muhurat ) वैदिक पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि 6 सितंबर को दोपहर 03:31 PM मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन यानी 7 सितंबर को संध्याकाल 05:37 PM मिनट पर समाप्त होगी। सनातन धर्म में उदया तिथि से गणना की जाती है। प्रदोष काल और निशा काल में होने वाली पूजा को छोड़कर सभी व्रत-त्योहार के लिए उदया तिथि से गणना की जाती है। अत: 7 सितंबर को गणेश चतुर्थी मनाई जाएगी। Ganesh Chaturthi (गणेश चतुर्थी) 2024 हर वर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर भगवान गणेश का अवतरण दिवस यानी जन्मोत्स्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान गणेश की विशेष पूजा की जाती है। साथ ही प्रतिमा स्थापना के समय तक व्रत-उपवास रखा जाता है। महाराष्ट्र और गुजरात समेत देश के सभी हिस्सों में गणेश उत्सव मनाया जाता है। महाराष्ट्र के हर घर में भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है। गणेश उत्सव दस दिनों तक होता है। सामान्यजन एक या पांच दिनों के लिए गणपति बाप्पा को घर लाते हैं। वहीं, सार्वजनिक स्थानों पर दस दिनों तक गणेश भगवान की पूजा और सेवा की जाती है। धार्मिक मत है कि भगवान गणेश की पूजा करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। साथ ही घर में सुख, समृद्धि एवं खुशहाली आती है। आइए, गणेश चतुर्थी की तिथि, शुभ मुहूर्त एवं योग जानते हैं।गणेश चतुर्थी कब और कैसे मनाई जाती है? गणेश चतुर्थी भाद्रपद मास में अगस्त-सितंबर के महीने में मनाई जाती है। यह त्योहार भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी में हम भगवान गणेश की पूजा करते हैं। इस दिन लोग अपने घरों और सार्वजनिक स्थानों पर भगवान गणेश की मूर्तियों की स्थापना करते हैं और दस दिनों तक विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। गणेश चतुर्थी का पौराणिक महत्व क्या है? गणेश चतुर्थी का पौराणिक महत्व भगवान गणेश के जन्म से जुड़ा है। कथा के अनुसार, माता पार्वती ने अपने शरीर के उबटन से गणेश जी की मूर्ति बनाई और उसमें प्राण फूँके। उन्होंने गणेश जी को द्वारपाल नियुक्त किया और किसी को अंदर आने से मना किया। जब भगवान शिव अंदर आना चाहते थे, तो गणेश जी ने उन्हें रोका। इस पर भगवान शिव ने क्रोधित होकर गणेश जी का सिर काट दिया। माता पार्वती के रोने पर भगवान शिव ने गणेश जी के सिर पर हाथी का सिर लगाकर उन्हें पुनर्जीवित किया और उन्हें प्रथम पूज्य का आशीर्वाद दिया। गणेश चतुर्थी का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व क्या है? गणेश चतुर्थी का धार्मिक महत्व भगवान गणेश की पूजा से जुड़ा है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता और बुद्धि के देवता माना जाता है। लोग इस दिन विशेष पूजा-अर्चना करते हैं, भगवान गणेश के भजन गाते हैं, और मोदक का भोग लगाते हैं। सांस्कृतिक दृष्टिकोण से, गणेश चतुर्थी एक सामाजिक त्योहार है, जो सामाजिक और पारिवारिक बंधनों को मजबूत करता है। इस दिन लोग अपने परिवार और मित्रों के साथ मिलकर उत्सव मनाते हैं और भगवान गणेश की मूर्तियों की स्थापना करते हैं। गणेश चतुर्थी की तैयारी कैसे होती है? गणेश चतुर्थी की तैयारी कई दिनों पहले से शुरू हो जाती है। लोग अपने घरों और सार्वजनिक स्थानों को सजाते हैं, भगवान गणेश की मूर्तियों को तैयार करते हैं, और विशेष पूजा सामग्री का प्रबंध करते हैं। बाजारों में सजावट का सामान, पूजा सामग्री और मिठाइयों की दुकानों पर रौनक रहती है। गणेश चतुर्थी का उत्सव कैसे मनाया जाता है? गणेश चतुर्थी के दिन लोग सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और नए कपड़े पहनते हैं। भगवान गणेश की मूर्ति की स्थापना करते हैं और विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। दस दिनों तक भगवान गणेश की पूजा की जाती है और अंतिम दिन विसर्जन के साथ उत्सव का समापन होता है। इस दिन लोग मोदक, लड्डू और अन्य मिठाइयाँ बनाते हैं और अपने परिवार और मित्रों के साथ मिलकर उत्सव मनाते हैं। भारत के विभिन्न हिस्सों में गणेश चतुर्थी कैसे मनाई जाती है? भारत के विभिन्न हिस्सों में गणेश चतुर्थी को अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इसे विशेष धूमधाम से मनाया जाता है, जबकि दक्षिण भारत में भी इसे उतने ही उत्साह से मनाया जाता है। तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में भी लोग गणेश चतुर्थी को विशेष पूजा-अर्चना और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ मनाते हैं। गणेश चतुर्थी का समग्र महत्व क्या है? गणेश चतुर्थी केवल एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं का एक अभिन्न हिस्सा है। यह त्योहार सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है और लोगों के बीच प्रेम, भाईचारा और सौहार्द को बढ़ावा देता है। गणेश चतुर्थी का उत्सव हमें यह सिखाता है कि बुराई पर अच्छाई की हमेशा जीत होती है और हमें अपने जीवन में नैतिकता और सत्य को अपनाना चाहिए। इस प्रकार, गणेश चतुर्थी का त्योहार न केवल भारत में बल्कि विश्वभर में भारतीयों द्वारा बड़े हर्षोल्लास और उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह पर्व हमें अपने जीवन में खुशियों, समृद्धि और शांति की ओर अग्रसर करता है और समाज में एकजुटता और प्रेम का संदेश फैलाता है।

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Vishwakarma Suktam (विश्वकर्म सूक्तम्)

विश्वकर्म सूक्तम्(Vishwakarma Suktam) य इमा विश्वा भुवनानि जुह्वदृषिर्होता निषसादा पिता नः। स आशिषा द्रविणमिच्छमानः परमच्छदो वर आ विवेश॥ विश्वकर्मा मनसा यद्विहाय धाता विधाता परमोत संदृक्। तेषामिष्टानि समि॒षा मदंति यत्र सप्तर्षीन्पर एकमाहुः॥ यो नः पिता जनिता यो विधाता यो नः सतो अभ्या सज्जजान। यो देवानां नामधा एक एव तं संप्रश्नं भुवना यंत्यन्या॥ त आयजंत द्रविणं समस्मा ऋषयः पूर्वे जरितारो न भूना। असूर्ता सूर्ता रजसो विमाने ये भूतानि समकृण्वन्निमानि॥ न तं विदाथ य इदं जजानान्यद्युष्माकमंतरं भवाति। नीहारेण प्रावृता जल्प्या चासुतृप उक्थशाश्चरंति॥ परो दिवा पर एना पृथिव्या परो देवेभिरसुरैर्गुहा यत्। कगं स्विद्गर्भं प्रथमं दध्र आपो यत्र देवाः समगच्छंत विश्वे॥ तमिद्गर्भं प्रथमं दध्र आपो यत्र देवाः समगच्छंत विश्वे। अजस्य नाभावध्येकमर्पितं यं स्मिन्निदं विश्वं भुवनमधिश्रितम्॥ विश्वकर्मा ह्यजनिष्ट देव आदिद्गंधर्वो अभवद्द्वितीयः। तृतीयः पिता जनितौषधीनामपां गर्भंव्यँदधात्पुरुत्रा॥ चक्षुषः पिता मनसा हि धीरो घृतमेने अजनन्नन्नमाने। यदेदंता अददृग्ंहंत पूर्वादिद्द्यावा पृथिवी अप्रथेताम्॥ विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतोमुखो विश्वतोहस्त उत विश्वतस्पात्। संबाहुभ्यां नमति संपतत्रैर्द्यावा पृथिवी जनयंदेव एकः॥ किगं स्विदासीदधिष्ठानमारंभणं कतमत्स्वित्किमासीत्। यदी भूमिं जनयन्विश्वकर्मा विद्यामौर्णोन्महिना विश्वचक्षाः॥ किग्ं स्विद्वनं क उ स वृक्ष आसीद्यतो द्यावा पृथिवी निष्टतक्षुः। मनीषिणो मनसा पृच्छतेदु तद्यध्यतिष्ठद्भुवनानि धारयन्॥ या ते धामानि परमाणि यावमा या मध्यमा विश्वकर्मन्नुतेमा। शिक्षा सखिभ्यो हविषि स्वधावः स्वयंयँजस्व तनुवं जुषाणः॥ वाचस्पतिंविँश्वकर्माणमूतये मनोयुजंवाँजे अद्या हुवेम। स नो नेदिष्ठा हवनानि जोषते विश्वशंभूरवसे साधुकर्मा॥ विश्वकर्मन्हविषा वावृधानः स्वयंयँजस्व तनुवं जुषाणः। मुह्यंत्वन्ये अभितः सपत्ना इहास्माकम्मघवा सूरिरस्तु॥ विश्वकर्मन्हविषा वर्धनेन त्रातारमिंद्रमकृणोरवध्यम्। तस्मै विशः समनमंत पूर्वीरयमुग्रो विहव्यो यथासत्॥ समुद्राय वयुना सिंधूनांपतये नमः। नदीनागं सर्वासांपि पित्रे जुहुता विश्वकर्मणे विश्वाहामर्त्यगं हविः।
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