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Shiva Bhujanga Prayat Stotram || शिव भुजंग प्रयात स्तोत्रम् : Full Lyrics and Benefits : A Divine Hymn of Lord Shiva
Shiva Bhujanga Prayat Stotram (शिव भुजंग प्रयात स्तोत्रम्)
शिव भुजंग प्रयात स्तोत्रम भगवान शिव की अपार महिमा और उनकी अद्भुत शक्तियों का वर्णन करने वाला एक पवित्र स्तोत्र है। इसे संस्कृत भाषा में भुजंग प्रयात छंद में रचा गया है, जो अपने लय और माधुर्य के लिए प्रसिद्ध है। इस स्तोत्र में भगवान शिव को "Destroyer of Evil", "Lord of Meditation", और "Supreme God" के रूप में संबोधित किया गया है। "Shiva Mantras", "Hindu Prayers", और "Shiva Stotras" जैसे विषयों में रुचि रखने वाले पाठकों के लिए यह स्तोत्र अत्यंत प्रभावशाली है। यह स्तोत्र भगवान शिव के सौम्य और रौद्र रूपों की आराधना का माध्यम है, जो भक्तों को उनके संरक्षण और कृपा का अनुभव कराता है। शिव भुजंग प्रयात स्तोत्रम का पाठ करने से "spiritual awakening", "inner peace", और "divine blessings" प्राप्त होते हैं। यह स्तोत्र विशेष रूप से भगवान शिव के "Tandava", "Meditative State", और "Cosmic Power" का गुणगान करता है। "Mahadev Worship", "Shivratri Prayers", और "Shiva's Cosmic Dance" जैसे विषयों से प्रेरणा लेने वालों के लिए यह स्तोत्र जीवन में भक्ति और ऊर्जा का एक उत्कृष्ट स्रोत है।शिव भुजंग प्रयात स्तोत्रम्
(Shiva Bhujanga Prayat Stotram)
कृपासागरायाशुकाव्यप्रदाय
प्रणम्राखिलाभीष्टसंदायकाय ।
यतींद्रैरुपास्यांघ्रिपाथोरुहाय
प्रबोधप्रदात्रे नमः शंकराय ॥1॥
चिदानंदरूपाय चिन्मुद्रिकोद्य-
त्करायेशपर्यायरूपाय तुभ्यम् ।
मुदा गीयमानाय वेदोत्तमांगैः
श्रितानंददात्रे नमः शंकराय ॥2॥
जटाजूटमध्ये पुरा या सुराणां
धुनी साद्य कर्मंदिरूपस्य शंभोः
गले मल्लिकामालिकाव्याजतस्ते
विभातीति मन्ये गुरो किं तथैव ॥3॥
नखेंदुप्रभाधूतनम्रालिहार्दा-
ंधकारव्रजायाब्जमंदस्मिताय ।
महामोहपाथोनिधेर्बाडबाय
प्रशांताय कुर्मो नमः शंकराय ॥4॥
प्रणम्रांतरंगाब्जबोधप्रदात्रे
दिवारात्रमव्याहतोस्राय कामम् ।
क्षपेशाय चित्राय लक्ष्म क्षयाभ्यां
विहीनाय कुर्मो नमः शंकराय ॥5॥
प्रणम्रास्यपाथोजमोदप्रदात्रे
सदांतस्तमस्तोमसंहारकर्त्रे ।
रजन्या मपीद्धप्रकाशाय कुर्मो
ह्यपूर्वाय पूष्णे नमः शंकराय ॥6॥
नतानां हृदब्जानि फुल्लानि शीघ्रं
करोम्याशु योगप्रदानेन नूनम् ।
प्रबोधाय चेत्थं सरोजानि धत्से
प्रफुल्लानि किं भो गुरो ब्रूहि मह्यम् ॥7॥
प्रभाधूतचंद्रायुतायाखिलेष्ट-
प्रदायानतानां समूहाय शीघ्रम्।
प्रतीपाय नम्रौघदुःखाघपंक्ते-
र्मुदा सर्वदा स्यान्नमः शंकराय ॥8॥
विनिष्कासितानीश तत्त्वावबोधा -
न्नतानां मनोभ्यो ह्यनन्याश्रयाणि ।
रजांसि प्रपन्नानि पादांबुजातं
गुरो रक्तवस्त्रापदेशाद्बिभर्षि ॥9॥
मतेर्वेदशीर्षाध्वसंप्रापकाया-
नतानां जनानां कृपार्द्रैः कटाक्षैः ।
ततेः पापबृंदस्य शीघ्रं निहंत्रे
स्मितास्याय कुर्मो नमः शंकराय ॥10॥
सुपर्वोक्तिगंधेन हीनाय तूर्णं
पुरा तोटकायाखिलज्ञानदात्रे।
प्रवालीयगर्वापहारस्य कर्त्रे
पदाब्जम्रदिम्ना नमः शंकराय ॥11॥
भवांभोधिमग्नान्जनांदुःखयुक्तान्
जवादुद्दिधीर्षुर्भवानित्यहोऽहम् ।
विदित्वा हि ते कीर्तिमन्यादृशांभो
सुखं निर्विशंकः स्वपिम्यस्तयत्नः ॥12॥
॥इति श्रीशंकराचार्य भुजंगप्रयातस्तोत्रम्॥
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