Sankashti Chaturthi (संकष्टी चतुर्थी) Date:- 2024-12-18

Pausha, Krishna Chaturthi Begins - 10:06 AM, Dec 18 Ends - 10:02 AM, Dec 19संकष्टी चतुर्थी कब और कैसे मनाई जाती है? संकष्टी चतुर्थी हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है। यह व्रत भगवान गणेश को समर्पित होता है और इसे करने से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर होते हैं। संकष्टी चतुर्थी का पौराणिक महत्व क्या है? संकष्टी चतुर्थी का पौराणिक महत्व भगवान गणेश से जुड़ा है। यह माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से भगवान गणेश की कृपा प्राप्त होती है और व्यक्ति के जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। संकष्टी चतुर्थी व्रत के प्रभाव से व्यक्ति के सभी कष्टों का निवारण होता है। संकष्टी चतुर्थी की तैयारी कैसे होती है? संकष्टी चतुर्थी की तैयारी में लोग अपने घरों को साफ-सुथरा रखते हैं और विशेष पूजा सामग्री का प्रबंध करते हैं। पूजा की थाली में तिल, जल, पुष्प, धूप, दीपक, और भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र शामिल होते हैं। इस दिन लोग ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके व्रत का संकल्प लेते हैं। संकष्टी चतुर्थी का उत्सव कैसे मनाया जाता है? संकष्टी चतुर्थी के दिन लोग उपवास रखते हैं और भगवान गणेश की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। इस दौरान गणेश मंत्रों का जाप किया जाता है और गणेश चालीसा का पाठ किया जाता है। शाम को दीपदान किया जाता है और भगवान गणेश को भोग लगाया जाता है। व्रतधारी रात को जागरण करते हैं और भगवान का स्मरण करते हैं। संकष्टी चतुर्थी का समग्र महत्व क्या है? संकष्टी चतुर्थी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं का एक अभिन्न हिस्सा है। यह पर्व धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है और समाज में धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को बढ़ावा देता है।

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भगवान शिव की कृपा और शक्ति पाने के लिए शिव चालीसा एक प्रसिद्ध भक्ति गीत है। इसमें 40 छंद हैं, जो Maha Shivratri और Shiv Puja के दौरान विशेष रूप से पाठ किए जाते हैं। Shiv Chalisa in Hindi का नियमित जाप भक्तों को आध्यात्मिक शांति और आशीर्वाद प्रदान करता है। यह Shiva Mantra for Positivity के साथ जीवन में सकारात्मक बदलाव और शक्ति का अनुभव कराता है। Shiv Ji Aarti और Shiv Ji Ki Puja के साथ इसका पाठ जीवन के सभी कष्टों को हरने में सहायक होता है।
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Shri Vishnu Ashtottara Satanam Stotram (श्री विष्णु अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम्)

श्री विष्णु अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम भगवान विष्णु के 108 पावन नामों का महत्त्वपूर्ण स्तोत्र है, जो भक्तों को सुख, समृद्धि, शांति और पापों से मुक्ति प्रदान करता है। इस स्तोत्र में भगवान के पालनकर्ता, नारायण, जनार्दन, मधुसूदन, केशव जैसे दिव्य नामों का स्मरण किया गया है। इसका नियमित पाठ करने से व्यक्ति को संकटों का नाश, धन-वैभव की प्राप्ति, और मनोकामना पूर्ण होने का आशीर्वाद मिलता है। इस स्तोत्र का पाठ व्रत, पूजा, एकादशी और विशेष अवसरों पर करने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और घर में सुख-शांति बनी रहती है। भगवान विष्णु के 108 नामों का जप व्यक्ति को सफलता, धार्मिक ज्ञान और आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करता है।
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Bhagavad Gita Twelveth Chapter (भगवद गीता बारहवाँ अध्याय)

भगवद गीता बारहवाँ अध्याय "भक्ति योग" के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण भक्ति को सबसे सरल और श्रेष्ठ मार्ग बताते हैं। वे कहते हैं कि जो भक्त पूर्ण श्रद्धा और प्रेम के साथ उनकी आराधना करता है, वह उनका प्रिय होता है। यह अध्याय "भक्ति की महिमा", "ईश्वर के प्रति प्रेम", और "सच्चे भक्त के गुण" का वर्णन करता है।
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Arti Ki Vidhi (आरती की विधि)

देवी देवता की विधिवत पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। पूजा के बाद आरती जरूर करना चाहिए। बिना आरती किए पूजा का पूर्ण फल नहीं मिलता है। ग्रंथों और पुराणों में आरती से जुड़े कई नियम बताए गए हैं कि किस दिशा में दीपक रखें और कैसे करें आरती। "आरती को 'आरात्रिक' अथवा 'नीराजन' के नाम से भी पुकारा गया है। घर और मंदिर में आरती करने की विधि अलग अलग होती है। शंख-ध्वनि और घंटे-घड़ियाल आरती के प्रधान अंग हैं। प्राचीन काल में प्रभु की उपासना कई विधियों द्वारा की जाती रही है। जैसे संध्या वंदन, प्रात: वंदन, प्रार्थना, हवन, ध्यान, भजन, कीर्तन आदि। आरती पूजा के अंत में की जाती है।
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Durga Saptashati (दुर्गासप्तशती) 1 chapter (पहला अध्याय)

दुर्गा सप्तशती एक हिन्दु धार्मिक ग्रन्थ है जिसमें राक्षस महिषासुर पर देवी दुर्गा की विजय का वर्णन है। दुर्गा सप्तशती को देवी महात्म्य, चण्डी पाठके नाम से भी जाना जाता है। इसमें 700 श्लोक हैं, जिन्हें 13 अध्यायों में बाँटा गया है। दुर्गा सप्तशती का पहला अध्याय "मधु और कैटभ का वध" पर आधारित है।
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Shri Ramchandra Arti (1) (श्री रामचन्द्र आरती)

श्री रामचंद्र आरती भगवान श्री रामचंद्र की भक्ति और महिमा को समर्पित एक पवित्र स्तुति है।
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Kali Stuti (काली स्तुति)

Kali Stuti (काली स्तुति):काली स्तुति माँ काली को समर्पित है। माँ काली को माता के सभी रूपों में सबसे शक्तिशाली रूप माना जाता है। नियमित रूप से काली स्तुति का पाठ करने से भय दूर होता है, बुद्धिमत्ता प्राप्त होती है, शत्रुओं का नाश होता है, और सभी प्रकार के कष्ट अपने आप समाप्त हो जाते हैं। माँ काली केवल प्रधान ही नहीं, बल्कि महाविद्याओं में सबसे महत्वपूर्ण हैं। माँ काली महाविद्याओं का प्रतीक हैं। सभी नौ महाविद्याएँ माँ काली से उत्पन्न होती हैं और उनके गुणों व शक्तियों को विभिन्न रूपों में साझा करती हैं। माँ काली विनाश और संहार की प्रतीक हैं। वे अज्ञान को नष्ट करती हैं, संसार के नियमों को बनाए रखती हैं और जो भगवान के ज्ञान की खोज करते हैं, उन्हें आशीर्वाद देकर मुक्त करती हैं। माँ काली देवी दुर्गा के उग्र रूपों में से एक हैं और भगवान शिव की अर्धांगिनी हैं, जो हिंदू त्रिमूर्ति में संहारक हैं। माँ काली की विशिष्ट छवि में उनकी बाहर निकली हुई जीभ, खोपड़ियों की माला, और घातक हथियार होते हैं, जो दुष्ट और पापी लोगों में भय उत्पन्न करते हैं। हालांकि, माँ काली अपने भक्तों के प्रति अत्यंत दयालु और करुणामयी हैं। वे अपने भक्तों को सभी संकटों से बचाती हैं और उन्हें समृद्धि व सफलता प्रदान करती हैं। काली स्तुति का नियमित पाठ करने से साधक को भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है, आकर्षण शक्ति मिलती है, पाप नष्ट होते हैं, शत्रु समाप्त होते हैं, और साधक के भीतर एक विशेष ऊर्जा उत्पन्न होती है। वेदों में माँ काली को अग्नि देव से जोड़ा गया है। देवी को सात झिलमिलाती अग्नि की जीभों के रूप में वर्णित किया गया है, जिनमें से काली काली और भयानक जीभ थीं। उनका स्वरूप भयावह है: डरावनी आँखें, लाल उभरी हुई जीभ, और चार भुजाएँ – जिनमें से दो में खून से सनी तलवार और राक्षस का कटा हुआ सिर है, और बाकी दो भय निवारण और वरदान देने की मुद्रा में हैं। उनके गले में मानव खोपड़ियों की माला और कमर पर कटी हुई भुजाओं की कमरबंध है। माँ काली की स्तुति उनके भक्तों के लिए अत्यंत प्रिय है।
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Shri Saraswati Stotram (श्री सरस्वती स्तोत्रम्)

श्री सरस्वती स्तोत्र: सरस्वती माता को प्रसन्न करने और उनसे हमारे व हमारे परिवार के लिए आशीर्वाद प्राप्त करने के कई तरीके हैं। सरस्वती हिंदू धर्म की देवी हैं, जो ज्ञान, संगीत, कला, बुद्धि और प्रकृति का प्रतीक हैं। वह सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती की त्रिमूर्ति का हिस्सा हैं। ये तीनों स्वरूप ब्रह्मा, विष्णु और शिव की त्रिमूर्ति को सृष्टि की रचना, पालन और विनाश में सहायता करते हैं। सरस्वती माता को पश्चिम और मध्य भारत के जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा भी श्रद्धापूर्वक पूजा जाता है।
Devi-Stotra