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Shri Ram Apaduddharaka Stotram || श्री राम आपदुद्धारक स्तोत्रम् : Full Lyrics in Sanskrit
Shri Ram Apaduddharaka Stotram (श्री राम आपदुद्धारक स्तोत्रम्)
श्री राम आपदुद्धारक स्तोत्रम् (Shri Ram Apaduddharaka Stotram) भगवान श्री राम (Lord Ram) की कृपा प्राप्त करने और कठिन परिस्थितियों (difficult situations) से मुक्ति पाने का एक शक्तिशाली स्तोत्र है। यह नकारात्मक ऊर्जा (negative energy) और असुर शक्तियों (evil forces) को दूर करता है, जिससे भक्तों को संरक्षण और शांति (protection and peace) मिलती है। राघव, जानकीनाथ, दशरथनंदन (Raghava, Janakinath, Dasharathanandan) जैसे पवित्र नामों का स्मरण करने से पापों से मुक्ति (freedom from sins) और आध्यात्मिक उन्नति (spiritual growth) होती है। यह स्तोत्रम् जीवन में सफलता, समृद्धि और सुख (success, prosperity, and happiness) प्रदान करने वाला है। श्री हरि विष्णु (Shri Hari Vishnu) के अवतार श्री राम की आराधना से भक्त कलियुग के दोषों (Kali Yuga Dosha) से बचते हैं और मोक्ष प्राप्त करते हैं।श्री राम आपदुद्धारक स्तोत्रम्
(Shri Ram Apaduddharaka Stotram)
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम् ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥
नमः कोदंडहस्ताय संधीकृतशराय च ।
दंडिताखिलदैत्याय रामायापन्निवारिणे ॥ 1 ॥
आपन्नजनरक्षैकदीक्षायामिततेजसे ।
नमोऽस्तु विष्णवे तुभ्यं रामायापन्निवारिणे ॥ 2 ॥
पदांभोजरजस्स्पर्शपवित्रमुनियोषिते ।
नमोऽस्तु सीतापतये रामायापन्निवारिणे ॥ 3 ॥
दानवेंद्रमहामत्तगजपंचास्यरूपिणे ।
नमोऽस्तु रघुनाथाय रामायापन्निवारिणे ॥ 4 ॥
महिजाकुचसंलग्नकुंकुमारुणवक्षसे ।
नमः कल्याणरूपाय रामायापन्निवारिणे ॥ 5 ॥
पद्मसंभव भूतेश मुनिसंस्तुतकीर्तये ।
नमो मार्तांडवंश्याय रामायापन्निवारिणे ॥ 6 ॥
हरत्यार्तिं च लोकानां यो वा मधुनिषूदनः ।
नमोऽस्तु हरये तुभ्यं रामायापन्निवारिणे ॥ 7 ॥
तापकारणसंसारगजसिंहस्वरूपिणे ।
नमो वेदांतवेद्याय रामायापन्निवारिणे ॥ 8 ॥
रंगत्तरंगजलधिगर्वहृच्छरधारिणे ।
नमः प्रतापरूपाय रामायापन्निवारिणे ॥ 9 ॥
दारोपहितचंद्रावतंसध्यातस्वमूर्तये ।
नमः सत्यस्वरूपाय रामायापन्निवारिणे ॥ 10 ॥
तारानायकसंकाशवदनाय महौजसे ।
नमोऽस्तु ताटकाहंत्रे रामायापन्निवारिणे ॥ 11 ॥
रम्यसानुलसच्चित्रकूटाश्रमविहारिणे ।
नमः सौमित्रिसेव्याय रामायापन्निवारिणे ॥ 12 ॥
सर्वदेवहितासक्त दशाननविनाशिने ।
नमोऽस्तु दुःखध्वंसाय रामायापन्निवारिणे ॥ 13 ॥
रत्नसानुनिवासैक वंद्यपादांबुजाय च ।
नमस्त्रैलोक्यनाथाय रामायापन्निवारिणे ॥ 14 ॥
संसारबंधमोक्षैकहेतुधामप्रकाशिने ।
नमः कलुषसंहर्त्रे रामायापन्निवारिणे ॥ 15 ॥
पवनाशुग संक्षिप्त मारीचादि सुरारये ।
नमो मखपरित्रात्रे रामायापन्निवारिणे ॥ 16 ॥
दांभिकेतरभक्तौघमहदानंददायिने ।
नमः कमलनेत्राय रामायापन्निवारिणे ॥ 17 ॥
लोकत्रयोद्वेगकर कुंभकर्णशिरश्छिदे ।
नमो नीरददेहाय रामायापन्निवारिणे ॥ 18 ॥
काकासुरैकनयनहरल्लीलास्त्रधारिणे ।
नमो भक्तैकवेद्याय रामायापन्निवारिणे ॥ 19 ॥
भिक्षुरूपसमाक्रांत बलिसर्वैकसंपदे ।
नमो वामनरूपाय रामायापन्निवारिणे ॥ 20 ॥
राजीवनेत्रसुस्पंद रुचिरांगसुरोचिषे ।
नमः कैवल्यनिधये रामायापन्निवारिणे ॥ 21 ॥
मंदमारुतसंवीत मंदारद्रुमवासिने ।
नमः पल्लवपादाय रामायापन्निवारिणे ॥ 22 ॥
श्रीकंठचापदलनधुरीणबलबाहवे ।
नमः सीतानुषक्ताय रामायापन्निवारिणे ॥ 23 ॥
राजराजसुहृद्योषार्चित मंगलमूर्तये ।
नम इक्ष्वाकुवंश्याय रामायापन्निवारिणे ॥ 24 ॥
मंजुलादर्शविप्रेक्षणोत्सुकैकविलासिने ।
नमः पालितभक्ताय रामायापन्निवारिणे ॥ 25 ॥
भूरिभूधर कोदंडमूर्ति ध्येयस्वरूपिणे ।
नमोऽस्तु तेजोनिधये रामायापन्निवारिणे ॥ 26 ॥
योगींद्रहृत्सरोजातमधुपाय महात्मने ।
नमो राजाधिराजाय रामायापन्निवारिणे ॥ 27 ॥
भूवराहस्वरूपाय नमो भूरिप्रदायिने ।
नमो हिरण्यगर्भाय रामायापन्निवारिणे ॥ 28 ॥
योषांजलिविनिर्मुक्त लाजांचितवपुष्मते ।
नमः सौंदर्यनिधये रामायापन्निवारिणे ॥ 29 ॥
नखकोटिविनिर्भिन्नदैत्याधिपतिवक्षसे ।
नमो नृसिंहरूपाय रामायापन्निवारिणे ॥ 30 ॥
मायामानुषदेहाय वेदोद्धरणहेतवे ।
नमोऽस्तु मत्स्यरूपाय रामायापन्निवारिणे ॥ 31 ॥
मितिशून्य महादिव्यमहिम्ने मानितात्मने ।
नमो ब्रह्मस्वरूपाय रामायापन्निवारिणे ॥ 32 ॥
अहंकारेतरजन स्वांतसौधविहारिणे ।
नमोऽस्तु चित्स्वरूपाय रामायापन्निवारिणे ॥ 33 ॥
सीतालक्ष्मणसंशोभिपार्श्वाय परमात्मने ।
नमः पट्टाभिषिक्ताय रामायापन्निवारिणे ॥ 34 ॥
अग्रतः पृष्ठतश्चैव पार्श्वतश्च महाबलौ ।
आकर्णपूर्णधन्वानौ रक्षेतां रामलक्ष्मणौ ॥ 35 ॥
सन्नद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा ।
तिष्ठन्ममाग्रतो नित्यं रामः पातु सलक्ष्मणः ॥ 36 ॥
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम् ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥
फलश्रुति
इमं स्तवं भगवतः पठेद्यः प्रीतमानसः ।
प्रभाते वा प्रदोषे वा रामस्य परमात्मनः ॥ 1 ॥
स तु तीर्त्वा भवांबोधिमापदस्सकलानपि ।
रामसायुज्यमाप्नोति देवदेवप्रसादतः ॥ 2 ॥
कारागृहादिबाधासु संप्राप्ते बहुसंकटे ।
आपन्निवारकस्तोत्रं पठेद्यस्तु यथाविधिः ॥ 3 ॥
संयोज्यानुष्टुभं मंत्रमनुश्लोकं स्मरन्विभुम् ।
सप्ताहात्सर्वबाधाभ्यो मुच्यते नात्र संशयः ॥ 4 ॥
द्वात्रिंशद्वारजपतः प्रत्यहं तु दृढव्रतः ।
वैशाखे भानुमालोक्य प्रत्यहं शतसंख्यया ॥ 5 ॥
धनवान् धनदप्रख्यस्स भवेन्नात्र संशयः ।
बहुनात्र किमुक्तेन यं यं कामयते नरः ॥ 6 ॥
तं तं काममवाप्नोति स्तोत्रेणानेन मानवः ।
यंत्रपूजाविधानेन जपहोमादितर्पणैः ॥ 7 ॥
यस्तु कुर्वीत सहसा सर्वान्कामानवाप्नुयात् ।
इह लोके सुखी भूत्वा परे मुक्तो भविष्यति ॥ 8 ॥
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