Sankashti Ganesh Chaturthi (गणेश चतुर्थी) Date :- 22.08.2024

Sankashti Ganesh Chaturthi (गणेश चतुर्थी) Date :- 22.08.2024संकष्टी गणेश चतुर्थी कब और कैसे मनाई जाती है? संकष्टी गणेश चतुर्थी हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाई जाती है। यह त्योहार मुख्यतः महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और उत्तर भारत के कई हिस्सों में मनाया जाता है। इस दिन लोग भगवान गणेश की पूजा करते हैं और व्रत रखते हैं। संकष्टी गणेश चतुर्थी का पौराणिक महत्व क्या है? संकष्टी गणेश चतुर्थी का पौराणिक महत्व भगवान गणेश से जुड़ा है। कथा के अनुसार, भगवान गणेश को संकटनाशक माना जाता है, जो भक्तों के सभी संकटों को दूर करते हैं। इस दिन भगवान गणेश की पूजा और व्रत रखने से सभी कष्ट और बाधाएं दूर होती हैं। संकष्टी गणेश चतुर्थी का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व क्या है? संकष्टी गणेश चतुर्थी का धार्मिक महत्व भगवान गणेश की पूजा और उनके आशीर्वाद से जुड़ा है। इस दिन लोग व्रत रखते हैं और भगवान गणेश की विशेष पूजा करते हैं। सांस्कृतिक दृष्टिकोण से, संकष्टी गणेश चतुर्थी एक सामाजिक और सांस्कृतिक पर्व है। यह उत्सव भगवान गणेश के प्रति भक्तों की श्रद्धा और विश्वास को दर्शाता है और समाज में धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को बढ़ावा देता है। संकष्टी गणेश चतुर्थी की तैयारी कैसे होती है? संकष्टी गणेश चतुर्थी की तैयारी में लोग विशेष पूजा सामग्री का प्रबंध करते हैं। घरों और मंदिरों को सजाया जाता है और भगवान गणेश की मूर्तियों की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। लोग इस दिन विशेष पकवान बनाते हैं और उन्हें भगवान गणेश को अर्पित करते हैं। संकष्टी गणेश चतुर्थी का उत्सव कैसे मनाया जाता है? संकष्टी गणेश चतुर्थी के दिन लोग सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और व्रत रखते हैं। दिन भर वे भगवान गणेश की पूजा करते हैं और उन्हें मोदक, लड्डू और अन्य मिठाई का भोग लगाते हैं। इस दिन विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और गणेश मंत्र का जाप किया जाता है। भारत के विभिन्न हिस्सों में संकष्टी गणेश चतुर्थी कैसे मनाई जाती है? भारत के विभिन्न हिस्सों में संकष्टी गणेश चतुर्थी को अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इसे विशेष धूमधाम से मनाया जाता है, जबकि दक्षिण भारत में भी इसे उतने ही उत्साह से मनाया जाता है। संकष्टी गणेश चतुर्थी का समग्र महत्व क्या है? संकष्टी गणेश चतुर्थी केवल एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं का एक अभिन्न हिस्सा है। यह पर्व धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है और समाज में धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को बढ़ावा देता है। इस प्रकार, संकष्टी गणेश चतुर्थी का उत्सव न केवल भारत में बल्कि विश्वभर में भारतीयों द्वारा बड़े हर्षोल्लास और उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह पर्व हमें अपने जीवन में खुशियों, समृद्धि और शांति की ओर अग्रसर करता है और समाज में एकजुटता और प्रेम का संदेश फैलाता है।

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10 Mahavidya (दस महाविद्या)

दस महाविद्या देवी दुर्गा के दस स्वरूपों को कहा जाता है। ये काली, तारा, छिन्नमस्ता, भुवनेश्वरी, त्रिपुरसुन्दरी, षोडशी, धूमावती, मातंगी, बगलामुखी, और कमला के रूप में पूजित हैं। इन सभी स्वरूपों का महत्व तंत्र और साधना में है। यह "आध्यात्मिक शक्ति", "साधना", और "आत्मज्ञान" का प्रतीक है।
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Sarawati Suktam (सरस्वती सूक्तम्)

सरस्वती सूक्तम् (Sarawati Suktam) (ऋ.वे. 6.61) इयम् ददाद्रभसमृणच्युतं दिवोदासं वँद्र्यश्वाय दाशुषे । या शश्वंतमाचखशदावसं पणिं ता ते दात्राणि तविषा सरस्वति ॥ 1 ॥ इयं शुष्मेभिर्बिसखा इवारुजत्सानु गिरीणां तविषेभिरूर्मिभिः । पारावतघ्नीमवसे सुवृक्तिभिस्सरस्वती मा विवासेम धीतिेभिः ॥ 2 ॥ सरस्वति देवनिदो नि बर्हय प्रजां-विंश्यस्य बृसयस्य मायिनः । उत क्षितिभ्योऽवनीरविंदो विषमेभ्यो अस्रवो वाजिनीवति ॥ 3 ॥ प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती । धीनामवित्र्यवतु ॥ 4 ॥ यस्त्वा देवी सरस्वत्युपब्रूते धने हिते । इंद्रं न वृत्रतूर्ये ॥ 5 ॥ त्वं देवी सरस्वत्यवा वाजेषु वाजिनि । रदा पूषेव नः सनिम् ॥ 6 ॥ उत स्या नः सरस्वती घोरा हिरण्यवर्तनिः । वृत्रघ्नी वष्टि सुष्टुतिम् ॥ 7 ॥ यस्या अनंतो अह्रुतस्त्वेषश्चरिष्णुरर्णवः । अमश्चरति रोरुवत् ॥ 8 ॥ सा नो विश्वा अति द्विषः स्वसृरन्या ऋतावरी । अतन्नहेव सूर्यः ॥ 9 ॥ उत नः प्रिया प्रियासु सप्तस्वसा सुजुष्टा । सरस्वती स्तोम्या भूत् ॥ 10 ॥ आपप्रुषी पार्थिवान्युरु रजो अंतरिक्षम् । सरस्वती निदस्पातु ॥ 11 ॥ त्रिषधस्था सप्तधातुः पंच जाता वर्धयंती । वाजेवाजे हव्या भूत् ॥ 12 ॥ प्र या महिम्ना महिनासु चेकिते द्युम्नेभिरन्या अपसामपस्तमा । रथ इव बृहती विभ्वने कृतोपस्तुत्या चिकितुषा सरस्वती ॥ 13 ॥ सरस्वत्यभि नो नेषि वस्यो माप स्फरीः पयसा मा न आ धक् । जुषस्व नः सख्या वेश्या च मा त्वत क्षेत्राण्यारणानि गन्म ॥ 14 ॥ **(ऋ.वे. 7.95)** प्र क्षोदसा धायसा सस्र एषा सरस्वती धरुणमायसी पूः । प्रबाबधाना रथ्येव याति विश्वा अपो महिना सिंधुरन्याः ॥ 15 ॥ एकाचेतत्सरस्वती नदीनां शुचिर्यती गिरिभ्य आ समुद्रात् । रायश्चेतंती भुवनस्य भूरेर्घृतं पयो दुदुहे नाहुषाय ॥ 16 ॥ स वावृधे नर्यो योषणासु वृषा शिशुर्वृषभो यज्ञियासु । स वाजिनं मघवद्भ्यो दधाति वि सातये तन्वं मामृजीत ॥ 17 ॥ उत स्या नः सरस्वती जुषाणोप श्रवत्सुभगा यज्ञे अस्मिन्न् । मितज्ञुभिर्नमस्यैरियाना राय युजा चिदुत्तरा सखिभ्यः ॥ 18 ॥ इमा जुह्वाना युष्मदा नमोभिः प्रति स्तोमं सरस्वति जुषस्व । तव शर्मन्प्रियतमे दधानाः उप स्थेयाम शरणं न वृक्षम् ॥ 19 ॥ अयमु ते सरस्वति वसिष्ठो द्वारावृतस्य सुभगे व्यावः । वर्ध शुभ्रे स्तुवते रासि वाजान्यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः ॥ 20 ॥ **(ऋ.वे. 7.96)** बृहदु गायिषे वचोऽसुर्या नदीनाम् । सरस्वतीमिन्महया सुवृक्तिभिस्स्तोमैरवसिष्ठ रोदसी ॥ 21 ॥ उभे यत्ते महिना शुभ्रे अंधसी अधिक्षियांति पूरवः । सा नो बोध्यवित्री मरुत्सखा चोद राधो मघोनाम् ॥ 22 ॥ भद्रमिद्भद्रा कृणवत्सरस्वत्यकवारी चेतति वाजिनीवती । गृणााना जमदग्निवत्स्तुवाना च वसिष्ठवत् ॥ 23 ॥ जनीयंतो न्वग्रवः पुत्रीयंतः सुदानवः । सरस्वंतं हवामहे ॥ 24 ॥ ये ते सरस्व ऊर्मयो मधुमंतो घृतश्चुतः । तेभिर्नोऽविता भव ॥ 25 ॥ पीपिवांसं सरस्वतः स्तनं-योँ विश्वदर्शतः । भक्षीमहि प्रजामिषम् ॥ 26 ॥ **(ऋ.वे. 2.41.16)** अंबितमे नदीतमे देवितमे सरस्वति । अप्रशस्ता इव स्मसि प्रशस्तिमंब नस्कृधि ॥ 27 ॥ त्वे विश्वा सरस्वति श्रितायूंषि देव्यम् । शुनहोत्रेषु मत्स्व प्रजां देवि दिदिड्ढि नः ॥ 28 ॥ इमा ब्रह्म सरस्वति जुशस्व वाजिनीवति । या ते मन्म गृत्समदा ऋतावरी प्रिया देवेषु जुह्वति ॥ 29 ॥ **(ऋ.वे. 1.3.10)** पावका नः सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती । यज्ञं-वष्टु धियावसुः ॥ 30 ॥ चोदयित्री सूनृतानां चेतंती सुमतीनाम् । यज्ञं दधे सरस्वती ॥ 31 ॥ महो अर्णः सरस्वती प्र चेतयति केतुना । धियो विश्वा वि राजति ॥ 32 ॥ **(ऋ.वे. 10.17.7)** सरस्वतीं देवयंतो हवंते सरस्वतीमध्वरे तायमाने । सरस्वतीं सुकृतो अह्वयंत सरस्वती दाशुषे वार्यं दात् ॥ 33 ॥ सरस्वति या सरथं-यँयाथ स्वधाभिर्देवि पितृभिर्मदंती । आसद्यास्मिन्बर्हिषि मादयस्वानमीवा इष आ धेह्यस्मे ॥ 34 ॥ सरस्वतीं-यां पितरो हवंते दक्षिणा यज्ञमभिनक्षमाणाः । सहस्रार्घमिलो अत्र भागं रायस्पोषं-यँजमानेषु धेहि ॥ 35 ॥ **(ऋ.वे. 5.43.11)** आ नो दिवो बृहतः पर्वतादा सरस्वती यजता गंतु यज्ञम् । हवं देवी जुजुषाणा घृताची शग्मां नो वाचमुशती शृणोतु ॥ 36 ॥ **(ऋ.वे. 2.32.4)** राकामहं सुहवां सुष्टुती हुवे शृणोतु नः सुभगा बोधतु त्मना । सीव्यत्वपः सूच्याच्छिद्यमानया ददातु वीरं शतदायमुक्थ्यम् ॥ 37 ॥ यास्ते राके सुमतयः सुपेशसो याभिर्ददासि दाशुषे वसूनि । ताभिर्नो अद्य सुमनाः उपागहि सहस्रपोषं सुभगे रराणा ॥ 38 ॥ सिनीवाली पृथु्ष्टुके या देवानामसि स्वसा । जुषस्व हव्य माहुतं प्रजां देवि दिदिड्ढि नः ॥ 39 ॥ या सुबाहुः स्वंगुरिः सुषूमा बहुसूवरी । तस्यै विश्पत्न्यै हविः सिनीवाल्यै जुहोतन ॥ 40 ॥ या गुंगूर्या सिनीवाली या राका या सरस्वती । इंद्राणीमह्व ऊतये वरुणानीं स्वस्तये ॥ 41 ॥ ॐ शांति: शांति: शांति:
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Shri Devi jii Arti (1) (श्री देवीजी आरती )

श्री देवी जी की आरती माँ दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती के दिव्य स्वरूप की महिमा का गुणगान करती है। इसमें माँ दुर्गा को सृष्टि की आदिशक्ति और भक्तों की रक्षक के रूप में पूजा जाता है। Goddess Lakshmi को धन, समृद्धि और वैभव का प्रतीक माना जाता है, जबकि Goddess Saraswati ज्ञान, संगीत और कला की अधिष्ठात्री देवी हैं। आरती में इन तीनों देवियों की शक्ति, करुणा और ज्ञान का वर्णन करते हुए उनसे कष्टों का नाश, सुख-समृद्धि, और शांति का आशीर्वाद माँगा जाता है।
Arti

Rudrayamala Tantra Shiva Sahasranama Stotram (रुद्रयामल आधारित शिव सहस्रनाम स्तोत्रम्)

यह स्तोत्र भगवान Shiva के 1000 divine names का उल्लेख करता है, जो उनकी अनंत शक्ति, करुणा और cosmic energy को दर्शाते हैं। रुद्रयामल ग्रंथ में वर्णित यह sacred hymn भक्तों को spiritual awakening, peace और prosperity प्रदान करता है। Lord Shiva को destroyer of negativity और giver of blessings माना गया है। इस स्तोत्र का पाठ जीवन के obstacles दूर कर positivity और divine protection को आकर्षित करता है। शिव जी की यह स्तुति भक्तों के भीतर inner strength और devotion की भावना को गहरा करती है।
Sahasranama-Stotram

Gayatri Stuti (गायत्री स्तुतिः)

गायत्री स्तुति वेदों की सबसे पवित्र प्रार्थना है, जो गायत्री देवी (Goddess Gayatri) की महिमा का वर्णन करती है। इसे वेदमाता (Mother of Vedas) कहा जाता है, जो ज्ञान, प्रकाश (Divine Light), और आध्यात्मिक ऊर्जा (Spiritual Energy) की प्रतीक हैं। यह स्तुति भक्तों को बुद्धि (Wisdom) और आत्मा (Soul) की शुद्धि के लिए प्रेरित करती है। गायत्री मंत्र और स्तुति का नियमित पाठ व्यक्ति को दिव्य शक्ति (Divine Power) प्रदान करता है, जिससे वह अपने जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता और शांति प्राप्त कर सकता है। गायत्री स्तुति का महत्व केवल आध्यात्मिक (Spiritual) ही नहीं, बल्कि मानसिक और शारीरिक (Physical and Mental) शांति में भी है। गायत्री देवी की आराधना से भक्त को सर्वज्ञता (Universal Knowledge) और सृष्टि के मूल सत्य का अनुभव होता है।
Stuti

Shri Nandakumar Ashtakam (श्री नन्दकुमार अष्टकम् )

Nandkumar Ashtakam (नन्दकुमार अष्टकम): Shri Nandkumar Ashtakam का पाठ विशेष रूप से भगवान श्री कृष्ण के Janmashtami या भगवान श्री कृष्ण से संबंधित अन्य festivals पर किया जाता है। Shri Nandkumar Ashtakam का नियमित recitation करने से भगवान श्री कृष्ण की teachings से व्यक्ति प्रसन्न होते हैं। श्री वल्लभाचार्य Shri Nandkumar Ashtakam के composer हैं। ‘Ashtakam’ शब्द संस्कृत के ‘Ashta’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है "eight"। Poetry रचनाओं के संदर्भ में, 'Ashtakam' एक विशेष काव्य रूप को दर्शाता है, जो आठ verses में लिखा जाता है। Shri Krishna का नाम स्वयं में यह दर्शाता है कि वह हर किसी को attract करने में सक्षम हैं। कृष्ण नाम का अर्थ है ultimate truth। वह भगवान Vishnu के आठवें और सबसे प्रसिद्ध avatar हैं, जो truth, love, dharma, और courage का सर्वोत्तम उदाहरण माने जाते हैं। Ashtakam से जुड़ी परंपराएँ अपनी literary history में 2500 वर्षों से अधिक की यात्रा पर विकसित हुई हैं। Ashtakam writers में से एक प्रसिद्ध नाम Adi Shankaracharya का है, जिन्होंने एक Ashtakam cycle तैयार किया, जिसमें Ashtakam के समूह को एक विशेष देवता की worship में व्यवस्थित किया गया था, और इसे एक साथ एक काव्य कार्य के रूप में पढ़ने के लिए डिज़ाइन किया गया था। उन्होंने विभिन्न देवताओं की stuti में 30 से अधिक Ashtakam रचे थे। Nandkumar Ashtakam Adi Shankaracharya द्वारा भगवान श्री कृष्ण की praise में रचित है। Nandkumar Ashtakam का पाठ भगवान श्री कृष्ण से संबंधित अधिकांश अवसरों पर किया जाता है, जिसमें Krishna Janmashtami भी शामिल है। यह इतना लोकप्रिय है कि इसे नियमित रूप से homes और विभिन्न Krishna temples में chant किया जाता है। Ashtakam में कई बार, quatrains (चार पंक्तियों का समूह) अचानक समाप्त हो जाती है या अन्य मामलों में, एक couplet (दो पंक्तियाँ) के साथ समाप्त होती है। Body में चौकड़ी में कवि एक theme स्थापित करता है और फिर उसे अंतिम पंक्तियों में समाधान कर सकता है, जिन्हें couplet कहा जाता है, या इसे बिना हल किए छोड़ सकता है। कभी-कभी अंत का couplet कवि की self-identification भी हो सकता है। संरचना meter rules द्वारा भी बंधी होती है, ताकि recitation और classical singing के लिए उपयुक्त हो। हालांकि, कई Ashtakam ऐसे भी हैं जो नियमित संरचना का पालन नहीं करते।
Ashtakam

Shri Vaishno Devi Chalisa (श्री वैष्णो देवी चालीसा)

श्री वैष्णो देवी चालीसा देवी माता वैष्णो देवी की महिमा का वर्णन करती है। इसका पाठ करने से सुरक्षा, मनोवांछित फल, और आध्यात्मिक शांति प्राप्त होती है। भक्तगण इस चालीसा का उपयोग वैष्णो देवी यात्रा, भक्ति मार्ग, और शक्ति आराधना के लिए करते हैं।
Chalisa

Shri Maha Mrityunjay Kavach (श्री महा मृत्युञ्जय कवच)

महा मृत्युञ्जय कवच का पाठ करने से जपकर्ता की देह सुरक्षित होती है। जिस प्रकार सैनिक की रक्षा उसके द्वारा पहना गया कवच करता है उसी प्रकार साधक की रक्षा यह कवच करता है। इस कवच को लिखकर गले में धारण करने से शत्रु परास्त होता है। इसका प्रातः, दोपहर व सायं तीनों काल में जप करने से सभी सुख प्राप्त होते हैं। इसके धारण मात्र से किसी शत्रु द्वारा कराए गए तांत्रिक अभिचारों का अंत हो जाता है। धन के इच्छुक को धन, संतान के इच्छुक को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।
Kavacha